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A GREAT MOTHER OF INDIA!!!

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By Nirmal Kumar, Mumbai, India

"ओछी प्रीत छिनाल की....."

साथियो, आजकल हमारी हिंदी में छिनाल प्रसंग का टीआरपी टॉप पर है! एस डब्ल्यू फालोन की "अ न्यू हिन्दुस्तानी इंग्लिश डिक्शनरी विद इलस्ट्रेशंस फ्रॉम हिन्दुस्तानी लिटरेचर एंड फोक लोर"  को पलटते हुए मेरी जिज्ञासा 'छिनाल' शब्द पर जा अटकी. सन 1889 में यह डिक्शनरी लन्दन से छपी थी जिसे बाद में भारती भण्डार, इलाहाबाद ने भी मुद्रित किया. आप सब जानते हैं फालोन साहब कई साल तक हिन्दुस्तान ख़ासकर बिहार में रहे थे और यहाँ के फोक लोर का अध्ययन किया था. बहरहाल, उन्होंने 'छिनाल' शब्द का विश्लेषण करते हुए एक कविता की ये दो पंक्तियाँ उद्धृत की है. गौर फरमाइए :  "ओछी पीत (प्रीत) छिनाल की निभे न काहू साथ,  नाउ   की   सी  आरसी   हर   काहू   के   हाथ."  हिन्दी की एक साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित एक साक्षात्कार के बाद छिनाल प्रसंग पर हुए विवाद के सन्दर्भ में आप इन पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कर सकते हैं! शुक्रिया. शशिकांत

साहित्य से खत्म होते गाँव और किसान

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मित्रो, लेखक अपने समय और समाज का अगुआ होता है! जब ग्लोबलाइजेशनी विकास से लबरेज राजधानी  बारिश से पानी-पानी हो रही हो और मुल्क़ के सबसे पिछड़े राज्य (बिहार) की करोड़ों जनता पर अकाल का पहाड़ टूट पड़ा हो , जब हिन्दुस्तान के सिरमौर कश्मीर का एक हिस्सा लेह और पड़ोसी मुल्क़ में आई प्राकृतिक आपदा से जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो, जब डेढ़ सौ करोड़ से शुरू हुआ कॉमनवेल्थ गेम्स का बजट 1 लाख करोड़ पहुँच गया हो और उसमें भ्रष्टाचार के मामले-दर-मामले सामने आ रहे हों, जब 1 सौ करोड़ से ज्यादा मुल्क़वासियों का पेट भरनेवाला किसान खेती छोड़ने को बाध्य हो रहा हो, फटेहाल हो और आत्महत्या कर रहा हो और उस मसले पर बनी 1 फिल्म (पीपली लाइव) पर बहस हो रही हो. वैसे दौर में एम्पावर्ड लेखकों की दो जमातें अपने अपने वर्चस्व जमाने की ख़ातिर पावर डिस्कोर्स कर रही हों-  इस पर हमें शर्मिंदा होना चाहिए. इतिहास यह सवाल हम सबसे पूछेगा बेशक! खैर, 'पीपली लाइव' फिल्म से मुल्क के किसानों और गाँवों की बदहाली की शुरू हुई बहस को साहित्य और पत्रकारिता (प्रिंट मीडिया) की बहस बनाने का आगाज़ करते हुए मैंन

पीपली लाइव इसलिए अच्छी नहीं लगी.....

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आत्महत्या करने वाले बिना किसी को बताए चुपके से आत्महत्या कर लेते हैं, किसी को बताते नहीं, जो बताते हैं वे शोले के वीरू की तरह तमाशा करते हैं. नत्था और उसका भाई ऐसे शातिर और चालाक किसान हैं जो आत्महत्या का नाटक रच कर सबको पगला दिए हैं. हिन्दुस्तान ही नहीं, पाकिस्तान की या किसी अन्य मुल्क़ की शायद (अपवाद में गिनी-चुनी) ही कोई पत्नी मुआवजे कि ख़ातिर अपने पति के मरने के फ़ैसले को आसानी से स्वीकार कर लेगी- मरना चाह रहे हो, पता नहीं, उसे बाद भी मुआवज़ा मिलेगा कि नहीं. जो साथी इसे व्यंग्य कि उत्कृष्ट फिल्म बता रहे हैं वे पता नहीं भीष्म साहनी का बहुचर्चित नाटक 'मुआवज़े' (एन.एस.डी. के कई शो देखे हैं मैंने, गज़ब का नाटक है) देखे हैं या नहीं, मैंने परसाई का व्यंग्य 'भोलाराम का जीव' पढ़ा है, शरद जोशी को भी थोड़ा-बहुत, और चार्ली चैप्लिन इज माय फेवरेट.  हाँ ये संभव है कि मुझे व्यंग्य की समझ नहीं. मीडिया के इतिहास में कोई घटना तब तक खबर नहीं बनती जब तक वो घट नहीं जाती, ख़ासकर इलक्ट्रोनिक मीडिया के लिए. अव्वल ये कि हिन्दुस्तान में रोज़ हज़ारों घटनाएं मीडिया रिपोर्टिंग से महरूम रह जात

'पीपली लाइव' देखने के बाद ....

वीरू : “कूद जाऊँगा...फाँद जाऊँगा... मर जाऊँगा…हट जाओ...” गाँव वाला -१ : “अरे-अरे ये क्या कर रहे हो?” वीरू : “वही कर रहा हूँ जो मजनूं ने लैला के लिए किया था, रांझा ने हीर के लिए किया था, रोमियो ने जूलियट के लिया था, सुसाइड, सुसाइड… गाँव वाला-२ : “अरे भाई ये 'सुसाइड' क्या होता है?” गाँव वाला-३ :"अँग्रेज़ लोग जब मरते हैं तो उसे 'सुसाइड' कहते हैं.”   गाँव वाला-२ : “लेकिन ये अँग्रेज़ लोग मरते क्यों हैं?” गाँव वाला-३ : “वो….”   गाँव वाला -१ : “अरे भाई बात क्या है? तुम सुसाइड क्यों करना चाहते हो?” वीरू : “ये मत पू्छो चाचा, तुम्हारे आँसू निकल आएँगे. ये बड़ी दुख भरी कहानी है. इस स्टोरी में इमोशन है, ड्रामा है, ट्रेजडी है!!!" #शोले “हम किसानों पर फिल्म बनाने चले थे लेकिन बन गई मीडिया पर…!” # महमूद फारूकी (सह-निर्देशक, ‘पीपली लाइव’) मित्रो, आमिर ख़ान प्रोडक्शन के बैनर तले अनूषा रिज़वी और महमूद फारूकी के निर्देशन में अभी हाल में रीलीज़ हुई फिल्म ‘पीपली लाइव’ की कहानी किसानों की आत्महत्या के इर्द-गिर्द घूमती है. मैने जो पढ़ा है, पिछले सालों में किसानों की &

आज 2 अक्टूबर है, बापू का जन्मदिन...!

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आज 2 अक्टूबर है, बापू का जन्मदिन...! 30 जनवरी सन 1948 नव-स्वाधीन भारत का काला दिन दक्षिणपंथी विचारधारा से ताल्लुक रखने वाले एक दिग्भ्रमित युवक  ने (मैं उसका नाम नहीं लेना चाहता) हमारे बापू को हमसे छीन लिया था. आज तक बापू को, बापू के बारे में (खिलाफ़ और पक्ष में) बहुत कुछ पढ़ा, सुना और कुछ फ़िल्में भी देखी अभी-अभी फेसबुक पर विचरते हुए मुझे बापू के आख़िरी क्षण का फोटो मिला है- (उसके दाएं हाथ में है पिस्तौल उंगली घोड़े पर बहस कर रहा है बापू से फिर गोलियां चलाएगा! ...................... हे राम!) आप सब भी देख सकते हैं! शुक्रिया. - शशिकांत 

किसान विरोधी है फिल्म पीपली लाइव

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"फिल्म में दिखाया गया है कि पैसे की खातिर किसान आत्महत्या करते हैं. यह सरासर ग़लत है. लगातार फसल खराब होने और बैंक के क़र्ज़ न चुका पाने की वजह से मज़बूर होकर किसान आत्महत्या कर रहे हैं..." आत्महत्या करनेवाले एक किसान की बेवा ने कैमरे के सामने कहा.  विदर्भ में पंद्रह अगस्त, रविवार को आमिर ख़ान के विरोध में हज़ारों किसानों ने प्रदर्शन किया.  आत्महत्या करनेवाले किसानों की विधवाओं, उनके अनाथ बच्चों और उनके परिवार के सदस्यों ने आज आमिर ख़ान का पुतला फूँका.  ये क्या कर दिया आपने आमिर भाई, अनूषा जी और महमूद भाई?  एक लाख रुपये की खातिर किसान आत्महत्या करते हैं?  एक ग़रीब किसान का भाई ही पैसे के लोभ में अपने भाई को आत्महत्या करने के लिए बाध्य करता है?  भाई-बहन, वाकई आपने ये सब यदि फिल्म में दिखाया है तो भयानक है.  आपकी यह फिल्म पूरी तरह किसान विरोधी है.  अरे, आप दिल्ली, बम्बई वाले  क्या जानें किसानों को?  नहीं कुछ तो यह फिल्म बनाने से पहले प्रेमचंद की "पूस की रात" कहानी ही पढ़ लेते.  आपलोगों ने सारा मज़ा किरकिरा कर दिया. हिन्दुस्तान के किसान ईश्वर, खु

टोटली पावर डिस्कोर्स है 'छिनाल' प्रसंग

साथियो, हिन्दी समाज में छिनाल प्रसंग पर छिड़े गृह-युद्ध में आख़िरकार अभय तिवारी, रविकान्त और अविनाश दास (बरास्ते दीवान) भी शामिल हो ही गये, लेकिन एक अलग दृष्टिकोण के साथ. इस मसले पर इसी दृष्टिकोण से बहस की दरकार थी और है. आप तीनों की राय जान कर तो ऐसा लग रहा है कि 'छिनाल' शब्द पर बवाल मचा रही देहवादी लेखिकाएँ अपने पैरों पर ही टांगी चला रही हैं. 'छिनाल' शब्द को स्त्री के लिए अपमान मानना स्त्री को पवित्र, पतिव्रता, देवी आदि बनाए रखना ही है, इंसान के तौर पर स्वीकार करना नहीं. यह पुरुषवादी मानसिकता है. इस लिहाज से दोनों पक्ष एक ही रास्ते के मुसाफिर हैं, इस बहस में. फिर क्या हस्र होगा हिंदी में स्त्री लेखन का? कैसे मिलेगी हिन्दुस्तान की  50 करोड़ स्त्रियों को पुरुष सत्ता से मुक्ति? मेरा मानना है कि हमारे समाज के हाशिए के जो भी वर्ग, समूह या तबके पिछले सालों में एम्पावर्ड हुए हैं वे  कुछ ज़्यादा ही ख़ुदग़र्ज़ और गैर ज़िम्मेदार हैं, और धन व ताक़त का भौंडा प्रदर्शन व दुरुपयोग कर रहे हैं.  जिस सामाजिक-आर्थिक ढाँचे की जलालत को झेल कर ये यहाँ पहुँचे हैं, खुद भी वैस

कॉमनवेल्थ गेम्स में मेहमाननवाजी के टिप्स

मित्रो, कॉमनवेल्थ गेम्स में अब सिर्फ पचास दिन बाकी रह गए हैं. तैयारियों में देरी, घोटाले आदि पर हो रही राजनीति से ज़्यादा ज़रूरी है कि हम इस खेल को सुचारू ढंग से संपन्न कराने में योगदान करें, खास कर हम दिल्लीवासियों के कंधे पर बड़ी ज़िम्मेदारी है. इस तैयारी के दौरान जो भी त्रुटियाँ हुईं हम उन पर गेम के बाद वाद, विवाद, संवाद, जांच और सजा आदि तय करेंगे. आख़िर हम एक लोकतांत्रिक मुल्क़ के नागरिक हैं.  बहरहाल, खिलाड़ियों क साथ-साथ दुनिया भर के लाखों लोग हमारे  दिल्ली शहर में तशरीफ़ ला रहे हैं. हम हिन्दुस्तानियों को मेहमाननवाजी  की  महान परम्परा विरासत में मिली है.  आज ही बीबीसी हिंदी.कॉम पर दो साल बाद लंदन में होनेवाले ओलंपिक खेल के दौरान दुनिया भर से ब्रिटेन आने वाले मेहमानों का स्वागत ठीक से हो इसके लिए वहां कि पर्यटन एजेंसी के अधिकारियों ने एक गाइड जारी की है. इस गाइड के जारी करने का उद्देश्य यह है कि ओलम्पिक के दौरान दुनिया भर से ब्रिटेन आने वाले मेहमानों का स्वागत ठीक से हो. वहां के पर्यटन विभाग का मानना है कि यदि पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोग, जैसे- होटल वाले, टैक्सी वाले, दुकानदार आदि

"छिनाल" प्रसंग के पीछे की राजनीति!

हममें से कुछ लोग इनफॉर्मल रूप में रोज़मर्रा तौर पर अपने घर और बाहर गाली-गलौच करते हैं- यह सच है, लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के नागरिक के तौर पर और एक सभ्य नागरिक के रूप में हम गाली-गलौच को फॉर्मल तौर पर कतई नही स्वीकार करते. मैने मर्दों से ज़्यादा भद्दी गालियाँ औरतों को देते हुए देखा-सुना है, अपने बिहार के गाँव की तथाकथित 'अनपढ़', 'गँवार' औरतों से लेकर दिल्ली यूनिवर्सिटी के मानसरोवर हास्टल के प्रो. वॉर्डन और उनकी प्रो. बीवी को ("वॉर्डन की बीवी: "तुम कुत्ता हो", वॉर्डन : "तुम कुत्ती हो"...)ठिठुरती सर्दी की रात में दरवाज़े के बाहर खड़े-खड़े. औरतों के सभ्य समाज में  मर्द  लोग तो गाली देने के लिए ही पैदा होते हैं. विनारा एक वीसी हैं, कि एक लेखक हैं या क़ि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं-उन्हें सार्वजनिक तौर पर ऐसी भाषा का इस्तेमाल कतई नहीं करना चाहिए था, और यदि उन्होने किया तो "एनजी" के संपादक रवीन्द्र कालिया को उसे एडिट कर देना चाहिए था. इसके लिए दोनो ज़िम्मेदार हैं बराबर.  दोनो हमारे दौर के महान नही

पाकिस्तान में बाढ़, सहायता के लिए यूएन की गुहार

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पाकिस्तान में मौजूद राहत एजेंसियों का कहना है कि अगर देश में बाढ़ से पनपे हालात से निबटने के लिए तुरंत अंतरराष्ट्रीय सहायता में बढ़ोतरी नहीं की गई तो और कई लोगों की जान ख़तरे में पड़ जाएगी. पाकिस्तान में बाढ़ अब देश की दक्षिणी हिस्सों की ओर बढ़ रही है और हर वक़्त नए इलाक़े इसके प्रभाव में आ रहे हैं. बुधवार को सयुंक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय के लिए ताज़ा अपील जारी करेगा. सयुंक्त राष्ट्र के आपातकालीन राहत कॉ-ऑर्डिनेटर जॉन होल्म्स ने बीबीसी को बताया, “हम फ़िलहाल 40 से 50 करोड़ अमरीकी डॉलर तक की सहायता की अपील करने वाले हैं. और ये सिर्फ़ पहले तीन महीनों के लिए एक प्रारंभिक आंकड़ा है जो मौजूदा हालात में संभव आकलन पर आधारित है.” बड़ी त्रासदी "हमारे लिए समस्या ये नहीं है कि कितने लोग मारे गए हैं बल्कि ये है कि कितने लोगों को सहायता चाहिए. हम कह रहे हैं कि पाकिस्तान में बाढ़ से प्रभावित लोगों की तादाद बहुत बड़ी है और ये लगातार बढ़ रही है." - जॉन होल्म्स, सयुंक्त राष्ट्र के आपातकालीन राहत कॉ-ऑर्डिनेटर सयुंक्त राष्ट्र का कहना है कि पाकिस्तान में आई मौजूदा बाढ़ से प्रभावित

पाकिस्तान में बाढ़

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पाकिस्तान में बाढ़

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50 करोड़ स्त्रियों की मुक्ति बरास्ते देह विमर्श?

मित्रो, पिछले दिनों 'नया ज्ञानोदय' में प्रकाशित विभूति नारायण राय के विवादास्पद इंटरव्यू के मसले पर आज के 'दैनिक भास्कर' ने पूरा ऑप-एड पेज़ दिया है. प्रो निर्मला जैन ने इंटरव्यू में प्रकाशित आपत्तिजनक शब्दों पर जांच की मांग की है, लेकिन कुल मिलाकर उनके इंटरव्यू को स्त्रियों के पक्ष में बताया है. दरअसल यह मामला अब देह विमर्श के समर्थन और विरोध - दो खेमों में बंटता दिख रहा है. हिंदी के सीनियर लेखकों का एक तबका इस तरह के आस्मितामूलक विमर्शों का लगातार विरोध या कहें अनदेखी करता रहा है. अख़बारों के लिए बातचीत करते हुए मैने पाया है कि नामवर सिंह, कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी, निर्मला जैन, असग़र वजाहत, उदय प्रकाश सरीखे लेखकों ने हिन्दी साहित्य के अस्मितामूलक विमर्शों के साथ-साथ स्त्री विमर्श के राजेंद्र यादव माडल (देह विमर्श) को कभी भी ज़्यादा तवज्जो नहीं दिया. इनमें से कई आज चुप हैं तो इसकी एक वजह यह भी है, और जो विरोध कर रहे हैं उन्हें इंटरव्यू में कहे गये आपत्तिजनक शब्द या शब्दों से है. (कृष्णा सोबती और निर्मला जैन से मैंने इस मसले पर बात की. मन्नू जी ने बिना पढ़े इस मसले