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बातचीत ''प्रतिपक्ष में रहना  आज  लेखक  की नियति  है''   - प्रो. केदारनाथ सिंह   के साथ   डॉ.  शशि कुमार  ‘ शशिकांत ’     दि ल्ली में रहते हुए भी हिंदी के वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह का रचनाकार मन बार-बार गाँव की ओर लौटता रहता है। केदार जी की कविता  ‘ नूर मियाँ ’  का काव्य नायक नूर मियाँ उनके पाठकों के मन में रच-बस चुका है। अक्सर उनकी कविता के पाठक नूर मियाँ को लेकर उनसे सवाल करते हैं। इस संबंध में उन्होंने एक रोचक संस्मरण सुनाया , ‘‘ पिछले दिनों पटना पुस्तक मेले में हिंदी के एक पाठक ने मुझसे पूछा , ‘‘ केदार जी , ‘ नूर मियाँ ’  कविता लिखे इतने दिन गुजर गए। बताइए कि पाकिस्तान जाने के बाद नूर मियाँ का क्या हुआ ?  वे अब कैसे हैं ?’’  इससे जाहिर होता है कि किसी रचना का एक पात्र किस तरह पाठक के मन में बैठ जाता है और रचनाकार एवं पाठक के बीच एक आत्मीय रिश्ता बनाता है। ‘ नूर मियाँ ’   कविता से बात शुरू होकर विभाजन की त्रासदी और हिंदू मुस्लिम संबंधों से गुजरते हुए गुजरात के दंगे तक आ जाती है। अभी हाल में के. विक्रम सिंह के साथ अपने ऊपर बन रही फिल्म के सिलसिले में गाँव से लौटे केदार