संदेश

सितंबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गड़बड़ी फैला सकता है पाकिस्तान, सतर्क रहें भारत की खुफिया एजेंसियां : प्रकाश सिंह ने शशिकांत से कहा

चित्र
मुझे लगता है कि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर जो फैसला आनेवाला है उस पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए क्योंकि दोनों पक्षों में से किसी को यदि इस फ़ैसले से असंतोष होता है तो सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता उसके सामने खुला हुआ है.  लेकिन फिर भी मैं कहना चाहूंगा कि हमारी खुफिया एजेंसियों को सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि पाकिस्तानी एजेंसियों की शह पर सिम्मी, इंडियन मुजाहिदीन जैसी उपद्रवी संस्थाएं फ़ैसले के बाद देश में गड़बड़ी फैला सकती हैं. दरअसल पाकिस्तान और वहां की एजेंसियां नहीं चाहतीं कि भारत में अमन का माहौल हो. वे हमेशा यहाँ गड़बड़ी फैलाने के मौके की तलाश में रहती हैं.  फैसला चाहे कुछ भी हो, यहाँ के दोनों पक्ष के लोगों को शांत किया जा सकता है लेकिन इस तरह के संवेदनशील मसले पर देश में शांति-व्यवस्था बनाए रखने की गंभीर चुनौती भी हमारे सामने है. यह मैं इस आधार पर कह रहा हूँ क्योंकि आजकल देश की हालत बहुत ठीक नहीं है. कश्मीर में पिछले कई महीनों से अशांति का माहौल है, उधर प. बंगाल में मिदनापुर जिले में अभी कुछ दिनों पहले जिस तरह कुछ उपद्रवियों ने एक धार्मिक स्थल को

आस्था संविधान और न्यायपालिका से ऊपर नहीं : राजेंद्र यादव ने शशिकांत से कहा

चित्र
मुझे लगता नहीं है कि अयोध्या पर कोर्ट का फैसला आने से कोई विशेष गड़बड़ होने जा रही है, क्योंकि दोनों ही पक्ष इस बात के लिए तैयार हैं कि फैसला उनके पक्ष में होगा और नहीं होगा तो वे आगे के कोर्ट में जाएंगे. अभी तो रास्ते खुले हैं.  हालांकि मुझे एक शंका यह भी है कि हिन्दू आसानी से आस्थाओं को तोड़ता नहीं है. मुसलमान तो बिल्कुल नहीं. मगर स्थिति यह बना दी गई है कि दोनों ही पक्ष सच्चाई नहीं जानना चाहते, सिर्फ अपनी आस्था का समर्पण चाहते हैं. अगर केवल हिन्दू समाज की बात करूँ तो आस्था के नाम पर अंधविश्वासों ने पता नहीं कितनी कुरीतियों और अन्यायों का समर्थन किया है. याद कीजिये जब सटी प्रथा पर रोक लगी थी तो आस्था पर कितना गहरा आघात उस समय के धर्मप्रण  हिंदुओं ने किया होगा. शायद उस वक्त कुछ प्रदर्शन और उपद्रव भी हुए थे.  नरबलि के ऊपर प्रतिबंध आसानी से स्वीकार नहीं किया गया, विधवा विवाह और बाल विवाह को लेकर तो अभी तक असंतोष और प्रतिरोध जारी है. इन्हें सामाजिक कुरीतियों की तरह नहीं  धार्मिक विश्वासों के रूप में देखा जाता है, चाहे खाप पंचायतों के प्रेमी युगल की हत्याओं का मामला हो

छिनाल-छिनाल न खेलें, आशीष नंदी के लिए लड़ें!

चित्र
बंधु, गुजरात दंगे का विरोध करने के लिए गुजरात की राजसत्ता आशीष नंदी को प्रताड़ित कर रही है. सभी लेखकों-बुद्धिजीवियों को इसका विरोध करना चाहिए. हिन्दी के हमारे बहुत से साथी लोग तो आजकल छिनाल-छिनाल खेल रहे हैं, जिसे मैं माफी प्रकरण के बाद पावर डिस्कोर्स मानता हूँ. मैंने दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील और हिन्दी लेखक अरविंद जैन से आशीष नंदी के मसले पर बात की है जो आज (4 सितंबर 2010) के दैनिक भास्कर, नई दिल्ली में "अभिव्यक्ति के अधिकार का हनन" शीर्षक से प्रकाशित हुई है. पूर्व संपादित लेख इस प्रकार है. -शशिकांत  अभिव्यक्ति के अधिकार का हनन अरविन्द जैन (हिंदी के बहुचर्चित लेखक और दिल्ली हाईकोर्ट में वरिष्ठ वकील)     मेरे हिसाब से यह लड़ाई उन बुद्धिजीवियों के विरुद्ध है जो गुजरात दंगे के खिलाफ़ थे. जिन बुद्धिजीवियों ने गुजरात सरकार, नरेन्द्र मोदी और उनकी नीतियों का विरोध किया उनके विरुद्ध किसी एनजीओ के माध्यम से एफआईआर दर्ज करवा देना राज्य सरकार के लिए मुश्किल काम नहीं है. आजादी के पहले इस किस्म के मुक़दमे गांधी, नेहरू, तिलक आदि नेताओं के खिलाफ़ भी हुए. ब्रिटिश हुकूमत अपनी

आशीष नंदी के खिलाफ़ गुजरात में मुकदमा, दिल्ली हाईकोर्ट ने नंदी की याचिका खारिज की

चित्र
मित्रो,  8 जनवरी 2008 को टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित यही वह लेख है जिसके आधार पर गुजरात सरकार ने एक एनजीओ के माध्यम से राजनीतिक मनोवैज्ञानिक लेखक आशीष नंदी के खिलाफ़ धारा 153 (ए) और 153 (बी) के तहत मुकदमा दायर किया है. डॉ नंदी पर सांप्रदायिक वैमनष्य फैलाने और राज्य की ग़लत छवि पेश करने जैसे आरोप लगाए गए हैं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट उनकी गिरफ्तारी पर पहले ही रोक लगा चुका है, लेकिन पिछले 1 सितम्बर 2010  को दिल्ली हाईकोर्ट ने गुजरात सरकार द्वारा मुकदमा चलाने के खिलाफ़ दायर डॉ आशीष नंदी की याचिका को खारिज कर दिया.   याद रहे दिसंबर 2007 में गुजरात विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद डॉ नंदी ने  यह लेख लिखा था जिसमें नरेन्द्र मोदी फिर से चुनाव जीतकर गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे. मेरा मानना है कि आशीष नंदी के खिलाफ़ गुजरात सरकार द्वारा की गई यह कार्रवाई गुजरात दंगे का विरोध करनेवाले बुद्धिजीवियों को सबक सिखाने का एक घृणित कृत्य है. जिस लेखक ने अपनी ज़िन्दगी के 73 साल समाज को जोड़ने के लिए न्यौछावर कर दिया हो उनके खिलाफ़ इस तरह का मुकदमा दर्ज करना क़ानून का दुरुपयोग

जेकरे माय मरे ओकरे एक पत्तल भात नय

चित्र
"पीपली लाइव से मिला मेहनताना इतना नहीं था कि घर पक्का करवा पाते." - ओंकारदास मानिकपुरी ('पीपली लाइव' में  नत्था की भूमिका निभाने वाला कलाकार)   "पीपली लाइव' के हीरो (नत्था) का घर आज भी कच्चा"    इस शीर्षक से आज 31 अगस्त 2010 को दैनिक भास्कर,  नई दिल्ली संस्करण में सोनाली चक्रवर्ती की छह कॉलम में एक ख़बर छपी है. ख़बर का पहला पैरा इस प्रकार है-   "बॉलीवुड स्टार आमिर खान की फिल्म 'पीपली लाइव' में नत्था की भूमिका में छाप छोड़ने वाले ओंकारदास मानिकपुरी कभी भिलाई की गलियों में सब्जी बेचते थे. लेकिन आज वे अपने घर में नहीं रुक पा रहे क्योंकि उनके घर पहुँचते ही प्रशंसकों की भीड़ जो घेर लेती है. वे छिप कर अपने बहनोई के घर में रह रहे हैं. उनका अपना घर आज भी कच्ची मिट्टी का बना है. वे कहते हैं कि 'पीपली लाइव'से मिला मेहनताना इतना नहीं था की घर पक्का करवा पाते...."   'दैनिक  भास्कर' की रिपोर्टर सोनाली चक्रवर्ती भिलाई में अपने बहनोई के घर में ठहरे नत्था से जब  बातचीत कर रही थीं ठीक उसी दिन 'पीपली लाइव'