संदेश

फ़रवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ये इश्क नहीं आसां ...!

चित्र
                                                                                      लैला-मजनूं   मित्रो, आज प्रेम दिवस है- वेलेंटाइन्स डे. 'दुनिया में इतनी हैं नफ़रतें..' के बीच कुछ मासूम  दिलोंमें में पनप रही चाहतों का हम सबको ख़ैर मख्दम करना चाहिए, पश्चिम-पूरब की बहस को छोड़कर. प्रेम प्रेम होता है देसी-बिदेसी नहीं...ख़ैर, पिछली साल वेलेंटाइन्स डे पर राजस्थान पत्रिका के लिए लिखा गया यह लेख आपके हवाले कर रहा हूँ. शुक्रिया.  - शशिकांत.    ‘ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजै एक आग का दरिया है और डूब के जाना है।’’ मिर्ज़ा असद-उल्लाह ख़ां ‘ग़ालिब’ ने यह नज़्म यूं तो उन्नीसवीं सदी में लिखी थी। आज भी मुहब्बत के पहरेदारों से जूझ रहे प्रमियों पर उनकी यह नज़्म उतनी ही सटीक बैठती है और सैकड़ों सालों से मिथ बने उन आशिकों पर भी, जिनका प्यार परवान नहीं चढ़ा और अपने प्यार की खातिर उन्होंने जान तक कुर्बान कर दी।  हिदुस्तान से लेकर अरब और यूरोप की ज़मीं पर उगीं ऐसी अनंत प्रेम कथाएं हैं, जो हर जुबां पर आज भी जिं़दा हैं। राधा-कृष्ण, शकुंतला-दुष्यंत, सावित्री-सत्यवा