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बिहार विधानसभा चुनाव-2010 : कांग्रेस का रिपोर्ट कार्ड

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बिहार विधानसभा चुनाव-2010 में अपने बलबूते चुनाव लड़नेवाली कांग्रेस को महज़ चार सीटें मिली हैं. इस परिणाम को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को ख़ुद मीडिया के सामने आकर सफाई देनी पड़ी. बिहार के प्रभारी मुकुल वासनिक की किरकिरी हुई उनसे राज्य में कांग्रेस की 'बुरी तरह' हुई हार की रिपोर्ट देने को कहा गया. इस बीच बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष महबूब अली कैसर को भी पार्टी हाइ कमान के सामने लाइन हाजिर होना पड़ा. यह सब इसलिए क्योंकि बिहार में कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी ने धुआंधार प्रचार किया था. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी वहां गई थीं.  दरअसल कांग्रेस उत्तर प्रदेश और बिहार में पार्टी को मज़बूत करने को लेकर काफे गंभीर है, और इसकी कमान कमान पार्टी के युवराज राहुल गांधी ने ख़ुद अपने कंधे पर ली है.  लेकिन ज़मीनी हकीकत के लिहाज से यदि बिहार के चुनाव परिणाम का विश्लेषण किया जाए तो आंकडे कांग्रेस को बहुत ज़्यादा मायूस नहीं करते. 243 सीटों के लिए हुए बिहार विधानसभा के चुनाव में कुल साढ़े पांच करोड़ मतदाताओं में 52.71 प्रतिशत मतदाताओं ने साढ़े तीन

बिहार में आज भी भाजपा पर भारी हैं लालू

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दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक मुल्क़ में इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि यहाँ चुनाव परिणाम सिर्फ और सिर्फ जीत-हार के आधार पर तय होता है, न कि पार्टियों को मिले वोट प्रतिशत के आधार पर. तभी तो बिहार विधानसभा के चुनाव में आरजेडी से कम वोट पाकर भी भाजपा जेडीयू के साथ सत्ता में बैठी है और लालू प्रसाद को धरासाई घोषित कर दिया गया है. आरजेडी से कम वोट पाकर भी भाजपा ने 91 सीटें जीत लीं और लालू जी को मिलीं महज़ 22 सीटें. यह लोकतंत्र का गड़बड़झाला है!     दरअसल, राजनीति जनाधार का खेल है. इसीलिए हर राजनीतिक पार्टी अपने संगठन को मज़बूत करना चाहती है, भले वह सत्ता में हो या सत्ता से बाहर. संगठन की सक्रियता ही पार्टी के लिए जनाधार तैयार करती है. यह जनाधार पार्टियों को मिले वोट प्रतिशत से तय होता है, और यही तय करता है कि ज़मीन पर किस राजनीतिक पार्टी की कितनी पकड़ है. बहरहाल, बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम को लेकर मुगालते में न रहें भाजपा के नेता.   चौंकाने वाली बात यह है कि बिहार में लालू प्रसाद का आरजेडी आज भी न केवल भाजपा पर भारी है बल्कि नीतीश सरकार को जमीन पर अच्छी-खासी चुनौती देने की कूव्वत र

नए और पुराने मूल्यों के बीच सैंडविच की तरह है नई पीढ़ी : कथाकार संजीव

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कहानीकार संजीव का जन्म कई जगहों पर हुआ है। लेकिन बचपन की स्मृतियों के संबंध में जहां सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में मेरा जन्म हुआ, उसका अपना एक विशेष प्रकार का आकर्षण रहा है।  इसे आप नॉस्टेल्जिया कहिए या कुछ और। वहां बचपन में जब बड़ी उम्र के लोग मुझे गोद में खिलाते थे, सियार, नील गाय दिखाते, बहलाते थे तो मुझे  उस समय तक की स्मृतियां हैं। सुल्तानपुर में मां रहती थीं इसलिए मेरे लिए यह ओकर्षणीय है। मैं पश्चिम बंगाल में पढ़ता था तब भी सुल्तानपुर से जुड़ा था। मैं अपने गांव से जुदा हो ही नहीं सकता। मुझे कभी-कभी प बंगाल से भी अधिक सुल्तानपुर अपील करता है। हालांकि उसने मुझे ऐसा कुछ दिया नहीं सिवाय जन्म, मां, पत्नी , रिश्तों और मित्रों को छोड़कर।  वहां से कुल्टी, पश्चिम बंगाल मेरे काका ले गए थे। उन्हें लगा कि लड़का दो अक्षर पढ़ लेगा वहां। कहते थे कि गांव में रहेगा तो गाय चराएगा, वहां जाएगा तो पढ़ लेगा। उस समय मैं तीन साल का था। गाड़ी मैंने पहली बार देखी थी। उस समय मुझे पेटोल की गंध बहुत अच्छी लगती थी। मेरे एक मि़त्र हैं सूर्य नारायण शर्मा। हम दोनों में बचपन से ही दुनिया बदल डालने की प्रवृत्ति रही।

अरुन्धती राय ने कश्मीर पर न्यूयार्क टाइम्स में लिखा

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The New York Times Kashmir’s Fruits of Discord By ARUNDHATI ROY Published: November 8, 2010 A WEEK before he was elected in 2008, President Obama said that solving the dispute over Kashmir’s struggle for self-determination — which has led to three wars between India and Pakistan since 1947 — would be among his “critical tasks.” His remarks were greeted with consternation in India, and he has said almost nothing about Kashmir since then. But on Monday, during his visit here, he pleased his hosts immensely by saying the United States would not intervene in Kashmir and announcing his support for India’s seat on the United Nations Security Council. While he spoke eloquently about threats of terrorism, he kept quiet about human rights abuses in Kashmir. Whether Mr. Obama decides to change his position on Kashmir again depends on several factors: how the war in Afghanistan is going, how much help the United States needs from Pakistan and whether the government of India goes aircraft