संदेश

मार्च, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारत में 20 साल बाद लड़कियों की भारी कमी : बीबीसी

चित्र
भारत में अगले दो दशकों में 20 फ़ीसदी युवकों को अपने लिए उपयुक्त जीवन साथी नहीं मिल पाएगा.  कनाडा के मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार बढ़ते लिंग निर्धारण के कारण भारत और चीन जैसे देशों में युवकों की संख्या में अगले 20 वर्षों के दौरान 10 से 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होगी और इस असंतुलन का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा. शोध के अनुसार बेटे की चाहत और लिंग के आधार पर गर्भपात के कारण इन देशों में पुरुषों और महिलाओं की संख्या में असंतुलन पैदा हो गया है. जन्म के समय लिंग अनुपात (एसआरबी) मतलब 100 लड़कियों के मुक़ाबले पैदा होने वाले लड़कों की संख्या लंबे समय से 105 बनी हुई है. लिंग का निर्धारण करने वाली तकनीक अल्ट्रासाउंड के विकसित होने के बाद दक्षिण कोरिया के कुछ शहरों में लिंग अनुपात बढ़कर 125 हो गया है और चीन के कुछ प्रांतों में तो ये 130 तक पहुंच गया है. भारत के पंजाब, दिल्ली और गुजरात में लिंग अनुपात 125 तक पहुंच चुका है जबकि केरल और आंध्र प्रदेश में ये अनुपात 105 है. इसका मतलब है कि पंजा

ब्रिटेन का 'कामसूत्र' है 'फैनी हिल'... : सुज़ेन

चित्र
फ्रेंक हुज़ूर सुज़ेन के साथ फ्रेंक हुज़ूर ने लन्दन के रेडलाईट एरिया सोहो की गलियों में घुसकर यूरोप की पोर्न इंडस्‍ट्री के  अंदरूनी सच को जानने क़ा जोखिम उठाया है. वहां से वे एक से एक दिलचस्प रपट हम तक पहुंचा रहे हैं. पेश है उनकी लंदन डायरी की अगली किस्त : मिशेल के सबसे खौफ़नाक मंज़र की फिल्मिंग में एनल सेक्स की ग़मज़दा सेटिंग थी. मुझे  ताज्ज़ुब बिलकुल नहीं हुआ, जब उसने कहा कि उसने करीब  30 दिनों  तक कोई पोर्न विडियो शूट नहीं किया. उसे सिर्फ़ ग़मज़दा माहौल से कोफ़्त थी, एनल सेक्स से कोई शिकवा नहीं. ''वह सीन जिसमें मुझे एक कब्रिस्तान में ताबूत के ऊपर फूलों के गुलदस्तों को रखने के लिए झुकना था और मेरा को-स्टार मेरे ग़मगीन काले लिबास को मेरे बुट्टोक के ऊपर फ़ना कर देता है और अपने हथियार को खंजर की तरह मेरे दोनों हिप्स के हवाले कर देता है... बहुत सारे लोगों को एनल सेक्स से कोफ़्त हो सकती है मगर पोर्न फिल्मों की फिज़ा में एनल सेक्स का अपना ही नशा है. मुझे इसमें एक ख़ास क़िस्म का मज़ा आता है. सबसे क्लीन सेक्स भी लगता है. संभ्रांतों के समाज को इसमें हिंसा नज़र आती रही

पाठालोचन की नई प्रविधि है ‘कामायनी-लोचन’

चित्र
काव्य और उसकी टीका-व्याख्या-आलोचना एक दूसरे के पूरक रहे हैं और अपरिहार्य भी। भारतीय साहित्य में लोकप्रिय साहित्यिक कृतियों की टीका-व्याख्या-आलोचना की परंपरा फूलती-फलती रही है। आधुनिक छायावादी कविता के चार स्तंभों में से एक जयशंकर प्रसाद रचित ‘कामायनी’ आधुनिक काव्य का ‘‘ऐसा गौरवग्रंथ है जिस पर सबसे अधिक आलोचनात्मक पुस्तकें तथा लेख लिखे गए हैं, सबसे अधिक टीकाएं लिखी गई हैं, सबसे अधिक शोधपरक निबंध एवं प्रबंध प्रणीत हुए हैं, और सर्वाधिक विवाद भी हुआ है।’’ दिल्ली विश्वविद्यालय हिदी विभाग के पर्व अध्यक्ष स्व0 डॉ उदयभानु सिंह की ‘कामायनी-लोचन’ शीर्षक से दो खंडों में प्रकाशित ‘कामायनी’ की टीका-व्याख्या इसी परंपरा की एक कड़ी है। प्रविधि के लिहाज से एक नए कलेवर में, लेकिन भाषा की दृष्टि से निहायत तत्समनिष्ठ, बोझिल और अकादमिक। मानो बीसवीं सदी की चौथी दहाई में लिखी गई कृति की टीका-व्याख्या उसी काल की भाषा में की जा रही हो- बिल्कुज अध्यापकीय आलोचना की भाषा की तरह। बतौर बानगी व्याख्याकार द्वारा किताब के ‘प्राक्कथन’ में लिखी ये पंक्तियां पढ़ी जा सकती हैं, ‘‘कवि के मन का, उसकी संकल्पात्मक अ

बंद हो कोख में क़त्ल

चित्र
साथियो, आज 8 मार्च है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस . हिन्दुस्तान जैसे पुरुष प्रधान समाज में  कन्या भ्रूण ह्त्या आज भी एक गंभीर समस्या है. आइये, आज हम सब बेटियों को बचाने का संकल्प लें. 14 मार्च 1999 (राष्ट्रीय सहारा) और 21 सितम्बर  2006 (जनसत्ता) में कन्या भ्रूण ह्त्या के खिलाफ़ प्रकाशित अपने ये लेख आपके हवाले कर रहा हूँ. शुक्रिया. - शशिकांत  पिछले दिनों सुप्रसिद्ध अमेरिकी पत्रिका 'फ़ोर्ब्स' ने दुनिया की सौ सशक्त महिलाओं की सूची में इंदिरा नूयी, सोनिया गांधी, ललिता गुप्ते, कल्पना मोरापिया और विद्या छाबड़िया को शामिल किया है. लेकिन इस खबर पर जब पूरा हिन्दुस्तान फ़ख्र  महसूस कर रहा था, ठीक उसी दिन एक न्यूज़ चैनल  ने राजस्थान के उदयपुर की एक झील में खून से लथपथ कन्या भ्रूणों को पानी में तैरते हुए दिखाकर हम हिन्दुस्तानियों को पूरी दुनिया के सामने शर्मसार कर दिया.  दिल दहला देनेवाली उस खबर से क्या यह साबित नहीं होता की परम्परागत पित्रिसत्तातामक समाज में पैदा होकर अपनी म्हणत और लगन से औरतों ने कामयाबी की सीढ़ियां तय कीं, लेकिन इस कामयाबी पर जश्न मना रहे हिन्दुक्स्तानी समाज का एक

एक पोर्न स्टार के दिल में मदर टेरेसा... : फ्रेंक हुज़ूर

चित्र
सोहो में एक बार के सामने फ्रेंक हुज़ूर   साथियो, मिशेल के साथ मुलाक़ात की फ़ीचर-रपट की दूसरी किश्त पेश कर रहे हैं फ्रेंक हुज़ूर   अपनी 'लन्दन  डायरी' में. - शशिकांत मिशेल की हर एक बात में करिश्मा का एहसास हो रहा था, "पोर्नोग्राफी को मैंने कभी भी एक प्रॉब्लम की तरह नहीं देखा है." पोर्नलैंड की इस हसीना से जब मैंने पूछा, "क्या उसे ऐसा नहीं लगता कि पोर्न ने सेक्सुअलिटी को हाईजैक कर लिया है?" तब उसकी आँखों में थोड़ी हरकत हुई. मिशेल ने नज़रों को तेज़ किया और कहा, "पोर्नोग्राफी को पब्लिक सिर्फ़ कामुकता  की माफिक क्यों लेती है?  पोर्नोग्राफी मेरी नज़र में तालीम है. हाँ, अगर आप ऐसा सोचते हैं कि टीनेज बच्चों पर क्रूर, हिंसक पोर्न का बुरा असर होता है तो फिर जिस तरह आप उन्हें सिगरेट पीने से रोकते आए हैं, उसी तरह पोर्न से भी बेपर्दा कर दीजिये. भला ये भी कोई मसला है क्या?" मिशेल ने हैरानगी की इन्तहाँ जारी रखी, जब उसने यह कहा, ^मासूम बच्चे जब बिन लादेन के वीडियो देखे और विडियो गेम खेले तब उनका दिमाग़ ख़राब नहीं होता है और जब उनकी आँखों के समंदर में हमारी स

पाकिस्तान गए तो अपनी बहुमूल्य धरोहर समेट लाए ओम थानवी

चित्र
मित्रो,  जनसत्ता के सम्पादक ओम थानवी कई बार पाकिस्तान की यात्रा कर चुके हैं. यूं तो बहुत से लोग हर साल पाकिस्तान जाते हैं लेकिन पाकिस्तान गया हर भारतीय मुअनजोदड़ो कहाँ जाता है.वीजा भी नहीं मिलता  आसानी से, जिस शहर में काम है, उसे छोड़कर कहीं जाने नहीं देते वे. खैर, ओम थानवी  मुअन जोदड़ो  गए, और गए तो अपनी बहुमूल्य धरोहर समेट लाए ओम थानवी.  मुअन जोदड़ो का उनका यात्रा-वृत्तान्त हम पढ़ चुके हैं जनसत्ता में.  प्राचीन भारतीय सभ्यता की इस धरोहर-सामग्री को किताब की शक्ल में आना बेहद ज़रूरी समझा जा रहा था. अब आ गई है- ' मुअन जोदड़ो' शीर्षक से, वाणी प्रकाशन से.  किताब का लोकार्पण  शनिवार 5 मार्च, 2011 को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एनेक्स के ऑडिटोरियम में कवि कुंवर नारायण  ने किया । अशोक वाजपेयी, उदय प्रकाश और पुरातत्त्ववेत्ता बृजमोहन पांडे  ने किताब पर विचार विमर्श किया ... और  अपूर्वानंद ने किया कार्यक्रम का संचालन ।  बतौर बानगी पेश है  बैक कवर पर प्रकाशित किताब के कुछ अंश:  - शशिकांत "मुअनजोदड़ो की खूबी यह है कि इस आदिम शहर की सड़कों और गलियों में आप आज भी घूम-फिर सकते हैं. यह