बिहार में आज भी भाजपा पर भारी हैं लालू

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक मुल्क़ में इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि यहाँ चुनाव परिणाम सिर्फ और सिर्फ जीत-हार के आधार पर तय होता है, न कि पार्टियों को मिले वोट प्रतिशत के आधार पर. तभी तो बिहार विधानसभा के चुनाव में आरजेडी से कम वोट पाकर भी भाजपा जेडीयू के साथ सत्ता में बैठी है और लालू प्रसाद को धरासाई घोषित कर दिया गया है. आरजेडी से कम वोट पाकर भी भाजपा ने 91 सीटें जीत लीं और लालू जी को मिलीं महज़ 22 सीटें. यह लोकतंत्र का गड़बड़झाला है!   

दरअसल, राजनीति जनाधार का खेल है. इसीलिए हर राजनीतिक पार्टी अपने संगठन को मज़बूत करना चाहती है, भले वह सत्ता में हो या सत्ता से बाहर. संगठन की सक्रियता ही पार्टी के लिए जनाधार तैयार करती है. यह जनाधार पार्टियों को मिले वोट प्रतिशत से तय होता है, और यही तय करता है कि ज़मीन पर किस राजनीतिक पार्टी की कितनी पकड़ है.

बहरहाल, बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम को लेकर मुगालते में न रहें भाजपा के नेता. चौंकाने वाली बात यह है कि बिहार में लालू प्रसाद का आरजेडी आज भी न केवल भाजपा पर भारी है बल्कि नीतीश सरकार को जमीन पर अच्छी-खासी चुनौती देने की कूव्वत रखता है. 

आंकड़ों का सच यह कह रहा है कि 243 सीटों के लिए हुए बिहार विधानसभा के चुनाव में बेशक नीतीश कुमार की अगुआई वाले जेडीयू को सबसे ज़्यादा 22.61 प्रतिशत लोगों ने वोट दिया. लेकिन दूसरे स्थान पर लालू प्रसाद का आरजेडी ही रहा जिसे  18.84 प्रतिशत वोट मिले. 
भाजपा तीसरे नंबर पर रही जिसे 16.46  प्रतिशत वोट मिले. यानी लालू के आरजेडी से कम. 
 
इन आंकड़ों पर गौर करने के बाद यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि बिहार विधानसभा के चुनाव में लालू प्रसाद की भले बुरी तरह हार हुई हो लेकिन उनके आरजेडी की ज़मीन अब भी मज़बूत है और बिहार में आज भी उनका अच्छा-ख़ासा जनाधार है.

सीएसडीएस द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव 2010 के जिलावार आंकड़े को देखें तो बिहार में सात  जिले (भोजपुर, बांका, भागलपुर, सारण, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर और मधुबनी) में लालू प्रसाद के आरजेडी को अन्य सभी दलों से ज़्यादा वोट मिले हैं. लेकिन वोट प्रतिशत के हिसाब से नंबर वन रहने के बावजूद आरजेडी को यहाँ महज नौ सीटें मिली हैं जबकि इन जिलों में विधानसभा की कुल 63  सीटें हैं. 

इसके अलावा सोलह जिलों (गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, कैमूर, लखीसराय, मुंगेर, समस्तीपुर, वैशाली, सिवान, दरभंगा, सहरसा, मधेपुरा, कटिहार, सुपौल और शिवहर) में आरजेडी वोट प्रतिशत के हिसाब से दूसरे नंबर पर है. इन जिलों में विधानसभा की कुल सत्तासी सीटें हैं जिनमें आरजेडी को सिर्फ 8 सीटें मिली हैं. 

इसी तरह, पूर्णिया, शेखपुरा, किशनगंज, नवादा, भागलपुर, बेगूसराय, सहरसा, सीतामढी और कैमूर जिले में कांग्रेस और आरजेडी के वोटों को मिला दिया जाए तो उनका प्रतिशत जेडीयू-भाजपा गठबंधन को मिले कुल वोटों से कहीं ज़्यादा होता है. उल्लेखनीय है कि इन जिलों में विधानसभा की कुल 48 सीटें हैं.

बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत का जमीनी आधार बहुत मज़बूत नहीं कहा जा सकता. दरअसल बिहार के चुनाव में असली जीत जेडीयू-भाजपा गठबंधन हुई है न कि अकेले जेडीयू या भाजपा की. अकेले तौर पर लालू आज भी वोट प्रतिशत में भाजपा पर भारी हैं और जेडीयू से थोडा ही पीछे. इसलिए बिहार में गठबन्धन बनाए रखना जेडीयू-भाजपा की मज़बूरी है.

अपने अच्छे-खासे जनाधार को मद्देनज़र रखते हुए लालू प्रसाद फिलहाल सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएं, बतौर  सांसद बिहार के विकास के लिए काम करें, नीतीश सरकार की गलतियों का इंतज़ार करें और वैकल्पिक गठबंधन बनाने की रणनीति बनाएं, क्योंकि बिहार अब भी संभावना है लालू प्रसाद के लिए! 

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