"ओछी प्रीत छिनाल की....."
साथियो,
आजकल हमारी हिंदी में छिनाल प्रसंग का टीआरपी टॉप पर है!
एस डब्ल्यू फालोन की
"अ न्यू हिन्दुस्तानी इंग्लिश डिक्शनरी विद इलस्ट्रेशंस फ्रॉम हिन्दुस्तानी लिटरेचर एंड फोक लोर"
को पलटते हुए
मेरी जिज्ञासा 'छिनाल' शब्द पर जा अटकी.
सन 1889 में यह डिक्शनरी लन्दन से छपी थी
जिसे बाद में भारती भण्डार, इलाहाबाद ने भी मुद्रित किया.
आप सब जानते हैं
फालोन साहब कई साल तक हिन्दुस्तान
ख़ासकर बिहार में रहे थे
और यहाँ के फोक लोर का अध्ययन किया था.
बहरहाल, उन्होंने 'छिनाल' शब्द का विश्लेषण करते हुए
एक कविता की ये दो पंक्तियाँ उद्धृत की है.
गौर फरमाइए :
"ओछी पीत (प्रीत) छिनाल की निभे न काहू साथ,
नाउ की सी आरसी हर काहू के हाथ."
हिन्दी की एक साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित एक साक्षात्कार के बाद
छिनाल प्रसंग पर हुए विवाद के सन्दर्भ में
आप इन पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कर सकते हैं!
शुक्रिया.
शशिकांत
gagar mey sagar isi ko kahate hai. chhote me badee baat...
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