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फ्रांस के अखबार "ले मोंडे" में प्रकशित भारत: वीडियो में कैद हमले की वीभत्स तस्वीर वायरल। मणिपुर में फिर हिंसा भड़की

फ्रांस के अखबार "ले मोंडे" में प्रकशित भारत: वीडियो में कैद हमले की वीभत्स तस्वीर वायरल। मणिपुर में फिर हिंसा भड़की भारत का छोटा सा पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर पिछले लगभग तीन महीने से मैतेई और कुकी के बीच अंतर-जातीय और धार्मिक संघर्ष की चपेट में है और गृहयुद्ध के कगार पर है। सोफी लैंड्रिन(नई दिल्ली, संवाददाता) 21 जुलाई 2023 पेरिस से प्रकाशित। हिंदी अनुवाद सम्पादन: शशिकांत पिछले तीन महीनों से उत्तर-पूर्व भारत के आदिवासी क्षेत्र मणिपुर को तबाह करने वाले मैतेई और कुकी के बीच अंतर-जातीय संघर्ष ने 19 जुलाई (बुधवार) को एक गंभीर मोड़ ले लिया। सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में कुकी जनजाति की दो महिलाओं को एक खेत में नग्न अवस्था में घसीटते हुए दिखाया गया है, जिसमें तथाकथित रूप से राज्य के प्रमुख जातीय समूह, मैतेई के हथियारबंद लोगों की भीड़ द्वारा उनके साथ छेड़छाड़ की गई। ये घटनाएँ राज्य में हिंसा भड़कने के अगले दिन, 4 मई को कांगपोकपी जिले में हुईं, और शायद अधिकारियों द्वारा आदेशित इंटरनेट ब्लैकआउट के कारण देर से सामने आईं। घटना में 21 साल की तीसरी महिला के साथ सामूहिक ब...

रवीश कुमार पर बनी "while we watched"फिल्म की द न्यूयॉर्क टाइम्स में समीक्षा

The New York Times में रवीश कुमार पर बनी while we watched फिल्म की समीक्षा:  ‘While We Watched’ Review: A Lament and a Battle Cry  'जबकि हमने देखा' की समीक्षा: एक विलाप और एक युद्धघोष अनुभवी प्रसारण पत्रकार रवीश कुमार के बारे में यह वृत्तचित्र भारत के लिए एक चेतावनी से कम एक प्रेरणादायक कहानी है।  द्वारा देविका गिरीश  20 जुलाई 2023  भारतीय फिल्म निर्देशक विनय शुक्ला की डॉक्यूमेंट्री फिल्म "व्हाइल वी वॉच्ड" के शुरुआती दृश्य में अनुभवी भारतीय समाचार एंकर रवीश कुमार, आंशिक रूप से ध्वस्त एक इमारत में खड़े हैं और आश्चर्य करते हैं, "जब आप खुद को अकेले पाते हैं, तो आप किसकी बात सुनते हैं?"  वर्तमान भारत के कुछ हाई-प्रोफाइल पत्रकारों में से एक के लिए जिसने सत्ता के सामने सच बोलने का साहस किया है - गिरती रेटिंग, मौत की धमकियों और स्वतंत्र प्रेस के प्रति बढ़ती शत्रुता से बेपरवाह - यह किसी अस्तित्वगत संकट से कम नहीं है।  वास्तव में, लोगों की आवाज बनने के लिए प्रतिबद्ध एक पत्रकार तब क्या करता है जब ऐसा लगता है कि वह सिर्फ अपने आप से बात कर रहा है?  "व्हाइल वी...
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बातचीत ''प्रतिपक्ष में रहना  आज  लेखक  की नियति  है''   - प्रो. केदारनाथ सिंह   के साथ   डॉ.  शशि कुमार  ‘ शशिकांत ’     दि ल्ली में रहते हुए भी हिंदी के वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह का रचनाकार मन बार-बार गाँव की ओर लौटता रहता है। केदार जी की कविता  ‘ नूर मियाँ ’  का काव्य नायक नूर मियाँ उनके पाठकों के मन में रच-बस चुका है। अक्सर उनकी कविता के पाठक नूर मियाँ को लेकर उनसे सवाल करते हैं। इस संबंध में उन्होंने एक रोचक संस्मरण सुनाया , ‘‘ पिछले दिनों पटना पुस्तक मेले में हिंदी के एक पाठक ने मुझसे पूछा , ‘‘ केदार जी , ‘ नूर मियाँ ’  कविता लिखे इतने दिन गुजर गए। बताइए कि पाकिस्तान जाने के बाद नूर मियाँ का क्या हुआ ?  वे अब कैसे हैं ?’’  इससे जाहिर होता है कि किसी रचना का एक पात्र किस तरह पाठक के मन में बैठ जाता है और रचनाकार एवं पाठक के बीच एक आत्मीय रिश्ता बनाता है। ‘ नूर मियाँ ’   कविता से बात शुरू होकर विभाजन की त्रासदी और हिंदू मुस्लिम संबंधों से गुजरते हुए गुजरात के दंगे तक आ जाती है। अभी हाल में के. वि...
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विफल प्यार, पुरुषों से मिले अनुभव और  विवाहेतर संबंध  को  खुलेपन से व्यक्त करनेवाली लेखिका  आ ज 1 फरवरी है. गूगल ने आज अँग्रेजी व मलयालम भाषा की भारतीय लेखिका कमला दास पर डूडल बनाकर उन्हें याद किया है. 1 फरवरी 1973 को आज ही के दिन उनकी विवादस्पद और बहुचर्चित किताब पहली बार 'Ente Kadha' शीर्षक से मलयालम में प्रकाशित हुई थी. कमला दास को कमला सुरैय्या के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि मलयालम भाषा में वो माधवी कुटटी के नाम से लिखती थीं।  31 मार्च 1934 को केरल के त्रिचूर जिले के पुन्नायुर्कुलम में जन्मी कमला की बहुत ही कम उम्र में शादी हो गई थी। उस वक्त उनकी उम्र मात्र पंद्रह साल की थी। 15 साल की उम्र से ही वे कवितायें लिखने लगी थीं। उनकी माँ बालमणि अम्मा एक बहुत अच्छी कवयित्री थीं. कमला दास पर उनकी माँ के  लेखन का खासा प्रभाव पड़ा। पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से परिवार के सो जाने के बाद वे रसोई में अपना लेखन जारी रखतीं और सुबह तक लिखती रहतीं। इससे उनकी सेहत ख़राब हो गई और वे बीमार रहने लगीं। अपने एक साक्षात्कार में कमला दास ने बताया, ''च...
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