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शतरंज की बिसात पर अमेरिका : टी. एस. आर. सुब्रमण्यम ने शशिकांत से कहा

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टी. एस. आर. सुब्रमण्यम मित्रो, उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस ऑफिसर  और भारत सरकार के पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी टी. एस. आर. सुब्रमण्यम  रिटायर होकर  आजकल नोएडा में रह रहे हैं.  रिटायरमेंट के बाद भी वे 3-4 चैरिटी आर्गनाइजेशन से जुड़कर  सोसायटी के डेवलपमेंट के लिए काम कर रहे हैं।  वे कैनेडियन एनजीओ "मैक्रो न्यूट्रीशन" के चेयरमैन भी हैं।        सुब्रमण्यम  साहब 1983 में जेनेवा गए.  उन्होंने गैट और डब्ल्यूटीओ में 5-6 साल काम किया.   28 दिसंबर 2010 की शाम को जब मैंने  उनको  फ़ोन किया तो वे मद्रास में थे.   उन्होंने सुबह 8.30 बजे फ़ोन करने कहा.   कल सुबह-सुबह 2010 में इंडो-यूएस रिलेशन पर उनसे बात हुई  जो आज दैनिक भास्कर, नई दिल्ली में प्रकाशित हुई है.  आप भी पढ़ें !   -शशिकांत   सन 2010 में बराक ओबामा साहब मुंबई और नई दिल्ली आए। दरअसल, 2008 में फाइनेंसियल क्राइसिस के बाद वहां बहुत सारी नौकरियां चली गईं। इतना ही नहीं, पिछले सालों में चीन ने विश्व की अर्थव्यवस्था में अमेरिका को तगड़ी चुनौती देकर अपनी धाक जमाई है। विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा में चीन अमेरिका को लगातार पछाड़

हम गुनहगार औरते हैं, न सर झुकाएं, न हाथ जोड़ें : किश्वर नाहीद

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कीश्वर नाहीद "हमारे यहां लड़कियों को पढ़ाने का रिवाज़ नहीं है, अगर तुम लड़कियों को पढ़ाओगी तो मेरे घर मत आना।" यह बात कही थी उर्दू की बहुचर्चित रायटर किश्वर नाहीद के अब्बू ने उनकी अम्मी से, क्योंकि वो अपनी बेटी किश्वर नाहीद को तालीम दिलाने की ख़्वाहिश रखती थीं।  बड़ी तकलीफ़ के साथ उन लम्हों को याद करती हुई वो कहती हैं, "मैंने उस ज़माने में तालीम हासिल की जब लड़कियों की पढ़ाई को अहमियत नहीं दी जाती थी। मेरे नाना उस वक्त बुलंदशहर के मजिस्ट्रेट थे। उन्होंने अम्मा से कहा, "हमारे यहां लड़कियों को पढ़ाने का रिवाज़ नहीं है, अगर तुम लड़कियों को पढ़ाओगी तो मेरे घर मत आना।"  अम्मा ने कहा, "ठीक है मैं नहीं आऊंगी, लेकिन लड़कियों को पढ़ाऊंगी ज़रूर।"  अब्बा ने कहा, "जितने पैसे घर ख़र्च के देता हूं, उससे एक पैसा ज़्यादा नहीं दूंगा।"  अम्मा ने कहा, "आधी रोटी ख़ाऊंगी लेकिन लड़कियों को पढ़ाऊंगी।"  अम्मा ने सोचा कि लड़कियां मैट्रिक पास करके अपना घर बसाएंगी। लेकिन मैट्रिक पास करने के बाद मैंने शोर मचाया कि मुझे कॉलेज जाना है। फिर मैंने बी.ए. किया

2001-2010 साहित्य : कलम का कमाल

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साथियो,   यह टिप्पणी 26 दिसम्बर 2010 को राजस्थान  पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। भाई हेतप्रकाश व्यास के आग्रह पर जल्दबाजी में लिखी गई यह टिप्पणी आपके हवाले कर रहा हूं।  - शशिकांत  भारतीय मूल के लेखकों का दुनिया में दबदबा। 88 साल बाद भारतीय मूल के लेखक को मिला नोबेल। अंग्रेजी साहित्यिक लेखन में यूरोप और अमरीका के लेखकों का आधिपत्य टूटा है।  अरुंधति रॉय  अक्टूबर 2001 भारतीय साहित्य जगत में घटित वह यादगार तारीख थी जब स्वीडिश अकेडमी ने भारतीय मूल के लेखक वी एस नायपाल को साहित्य का नोबेल प्राइज देने की घोषणा की। भारतीय या भारतीय मूल के किसी लेखक को साहित्य का यह नोबेल पुरस्कार अठ्ठासी साल बाद मिला था।     उसके बाद सन् 2006 का बुकर पुरस्कार भारतीय मूल की लेखिका किरण देसाई को उनकी किताब ‘दि इन्हेरिटेंस ऑफ  लॉस’ को दिया गया।     उदय प्रका श उसके बाद सन 2008 का बुकर पुरस्कार एक बार फि र भारतीय मूल के लेखक अरविन्द अडिगा को उनके उपन्यास ‘दि ह्वाइट टाइगर’ पर मिला। उस साल बुकर पुरस्कार के लिए आखिरी दौर में जिन छह लेखकों की किताबें पहुंचीं उनमें भारतीय मूल के लेखक अमिताव घोष की

बड़े गपोड़ होते हैं ये हिंदीवाले !

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मित्रो, यह टिप्पणी आज राष्ट्रीय सहारा के रविवारीय 'उमंग' में प्रकाशित हुई है. इसका मज़ा लें ! - शशिकांत   ‘‘गप्प-शप्प का अपना रस होता है। इस गप्प शप्प में हम सांस्कृतिक क्षेत्र में चलने वाले  कार्यकलाप,  लेखक के आपसी रिश्ते, उन्हें परेशान करनेवाले तरह-तरह के मसले, उनके जीवनयापन की स्थिति,  उनके आपसी झगड़े और मनमुटाव आदि आदि हमारी सांस्कृतिक गतिविधि से पर्दा उठाते है और हम लेखक को हाड़ मांस के  पुतले के रूप में देख पाते है। लेखक अपनी इन कमजोरियों के रहते  अपनी लीक पर चलता हुआ सृजन के क्षेत्र में कहीं सफल और कहीं असफल होता  हुआ अपनी इस यात्रा को कैसे निभा पाता है, इसे हम उसके जीवन के  परिप्रेक्ष्यमें देख पाते हैं।’’   - भीष्म साहनी गॉ सिप यानि गप्प। यानि अफवाह, झूठ, छद्म वगैरह-वगैरह। सेलिब्रेटी लोग गॉसिप से खार खाते हैं। खासकर बॉलिवुड के स्टार्स। पता नहीं कौन पेपर, मैगजीन या इंटरटेनमेंट चैनल किसके बारे में कौन सी गॉसिप उड़ा दे, और वो भी नमक-मिर्च मिलाकर। कुछ सेलिब्रेटिज गॉसिप को अपनी पर्सनल लाइफ में मीडिया की घुसपैठ मानते हैं तो कुछ इसके खूब मजे लेते हैं। आखिर इससे उनकी

उदय प्रकाश को साहित्य अकादेमी पुरस्कार

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साथियो, हमारे दौर के हिंदी के बहुचर्चित कवि, कथाकार पत्रकार और फिल्मकार उदय प्रकाश को सन 2008 का हिंदी का साहित्य अकादेमी पुरस्कार देने की घोषणा कर दी गई है. उदय प्रकाश की कुछ कृतियों के अंग्रेज़ी, जर्मन, जापानी एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में अनुवाद भी उपलब्ध हैं। लगभग समस्त भारतीय भाषाओं में रचनाएं अनूदित हैं। इनकी कई कहानियों के नाट्यरूपंतर और सफल मंचन हुए हैं। 'उपरांत' और 'मोहन दास' के नाम से इनकी कहानियों पर फीचर फिल्में भी बन चुकी हैं, जिसे अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। उदय प्रकाश स्वयं भी कई टी.वी.धारावाहिकों के निर्देशक-पटकथाकार रहे हैं। सुप्रसिद्ध राजस्थानी कथाकार विजयदान देथा की कहानियों पर बहु चर्चित लघु फिल्में प्रसार भारती के लिए निर्देशित-निर्मित की हैं। भारतीय कृषि का इतिहास पर महत्वपूर्ण पंद्रह कड़ियों का सीरियल 'कृषि-कथा' राष्ट्रीय चैनल के लिए निर्देशित कर चुके हैं। 'सुनो कारीगर', 'अबूतर कबूतर', 'रात में हारमोनियम', 'एक भाषा हुआ करती है', 'कवि ने कहा' उदय प्रकाश के

जज बोलें तो न्याय, लेखक बोलें तो गाली. वाह योर ऑनर वाह!

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न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू पुरुष  सत्तात्मक भारतीय समाज में स्त्री को हर पल, हर घण्टे और हर दिन स्त्री होने की सजा भुगतनी पड़ती है. कन्या भ्रून हत्या, बेटियों के साथ भेदभाव, दहेज़ उत्पीडन, राह चलते छेडछाड, बलात्कार और फिर उसकी हत्या...और न जाने किस-किस रूप  में.  भारतीय संविधान में हर भारतीय नागरिक को समानता का अधिकार दिया गया है. अनुच्छेद चौदह से अठारह तक में इसका जिक्र है. इन अनुच्छेदों में कहाँ गया है कि   धर्म, वंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जायेगा।    बावजूद इसके पिछ्ले साठ सालों में अनगिनत भारतवासियों से उनका ये अधिकार छीना  गया है और आज भी छीना जा रहा है.  लिंगभेद की वजह से स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार का मामला हो या कोई और, आम औरत या आदमी अदालत की शरण में जाता है और न्याय की गुहार लागाता है, यह जानते और झेलते हुए कि अदालातों में तारीख दर तारीख खिंचती हैं कार्रवाइयाँ, नीचे से ऊपर तक  व्याप्त है भ्रष्टाचार, पुलिस, गुन्डों और माफिया तत्वों के बीच होती है मिलीभगत.  इन भयानक हालातों के बीच कोई औरत फिर भी यदि दुस्साहस करके न्याय की गुहार लगात

शक्ति-पूजा और स्त्री की मुक्ति : उदय प्रकाश/अनामिका

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5 अक्टूबर 2010. दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स शुरू हो चुका था. कॉमनवेल्थ खेल गाँव के ठीक सामने नोएडा मोड़ के पास की जिस दिल्ली पुलिस सोसायटी में आजकल मेरा बसेरा है, उसके इर्द-गिर्द पुलिस चाक-चौबंद  थी.  रेहड़ी-पटरी और तरकारी बेचनेवालों पर तो शामत आ गई थी. सबको खदेड़ दिया गया था. कहीं जाना-आना भी गोआम. दुर्गापूजा नज़दीक था. 10-15 सालों से बिहार का  दशहरा नहीं देखा था. झट से गाँव जाने का प्लान बन गया. माँ की तबीयत भी ठीक नहीं थी. उन्हें दिल्ली लाना था. शाम की ट्रेन. दोपहर को अल्ट्रा स्त्रीवादी लेखिका और 'राष्ट्रीय सहारा' की वरिष्ठ पत्रकार मनीषा जी का आदेश हुआ, "दुर्गापूजा के अवसर पर भारत में शक्ति-पूजा की परम्परा और भारतीय समाज में स्त्री की दशा के सन्दर्भ में उदय प्रकाश और अनामिका जी से बातचीत कर लो 'आधी दुनिया' के लिए." फ़टाफ़ट मोबाइल उठाया. दोनों से बातचीत की और कम्पोज़ करके अनामिका जी का लेख मनीषा जी को और उदय जी का लेख उदय जी को प्रकाशन से पूर्व एक नज़र डाल लेने के लिए भेजकर नदिरे रवाना हुआ...अपने गाँव बड़हिया में उदय प्रकाश और अनामिका जी के विचारों को पढ़ना सुख

मुल्क़ में भ्रष्टाचार पर चिंतित हैं ये लेखक

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मित्रो,  आज हम एक ऐसे वक्त में रह रहे हैं जब पूरे मुल्क़ में घपले, घोटाले और भ्रष्टाचार के नए-नए मामले रोज़-ब-रोज़ हमारे सामने आ रहे हैं. इनमें नेता भी हैं पूंजीपति भी, ब्यूरोक्रेट्स भी हैं जज भी, और पत्रकार भी.  और अब भ्रष्टाचार की तोहमत सिर्फ मर्दों पर भी नहीं लगाईं जा सकती. हर दिन, हर पल मीडिया की सुर्खियाँ बन रही भ्रष्टाचार की इन अनगिनत दस्तानों पर हमारा लेखक तबका क्या सोच रखता है, इसको लेकर 10 दिसंबर 2010 को चार लेखकों (अशोक वाजपेयी, असगर वजाहत, आलोक राय और अनामिका ) से बातचीत हुई, जो 11 दिसंबर के दैनिक भास्कर, नई दिल्ली संस्करण में साहित्य के पन्ने पर प्रकाशित हुई है. इन्हें आपके हवाले कर रहा हूँ.  शुक्रिया.   - शशिकांत   लालची हो गया है हमारा मध्य वर्ग : अशोक वाजपेयी देश में चौतरफा फैले भ्रष्टाचार के मामले में दो-तीन मुख्य बातें हैं।  पहली, संविधान की धारा तीन सौ गयारह है। इस धारा में देश के सिविल सेवकों को सुरक्षा मिली हुई है! पहला सवाल यह उठता है कि सिविल सेवकों को इस तरह की सुरक्षा क्यों मिली हुई है। आज जब रोज-रोज घपले और घेटाले के मामले सामने आ रहे हें तो धारा तीन सौ

बिहार विधानसभा चुनाव-2010 : कांग्रेस का रिपोर्ट कार्ड

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बिहार विधानसभा चुनाव-2010 में अपने बलबूते चुनाव लड़नेवाली कांग्रेस को महज़ चार सीटें मिली हैं. इस परिणाम को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को ख़ुद मीडिया के सामने आकर सफाई देनी पड़ी. बिहार के प्रभारी मुकुल वासनिक की किरकिरी हुई उनसे राज्य में कांग्रेस की 'बुरी तरह' हुई हार की रिपोर्ट देने को कहा गया. इस बीच बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष महबूब अली कैसर को भी पार्टी हाइ कमान के सामने लाइन हाजिर होना पड़ा. यह सब इसलिए क्योंकि बिहार में कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी ने धुआंधार प्रचार किया था. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी वहां गई थीं.  दरअसल कांग्रेस उत्तर प्रदेश और बिहार में पार्टी को मज़बूत करने को लेकर काफे गंभीर है, और इसकी कमान कमान पार्टी के युवराज राहुल गांधी ने ख़ुद अपने कंधे पर ली है.  लेकिन ज़मीनी हकीकत के लिहाज से यदि बिहार के चुनाव परिणाम का विश्लेषण किया जाए तो आंकडे कांग्रेस को बहुत ज़्यादा मायूस नहीं करते. 243 सीटों के लिए हुए बिहार विधानसभा के चुनाव में कुल साढ़े पांच करोड़ मतदाताओं में 52.71 प्रतिशत मतदाताओं ने साढ़े तीन