जज बोलें तो न्याय, लेखक बोलें तो गाली. वाह योर ऑनर वाह!

न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू
पुरुष सत्तात्मक भारतीय समाज में स्त्री को हर पल, हर घण्टे और हर दिन स्त्री होने की सजा भुगतनी पड़ती है. कन्या भ्रून हत्या, बेटियों के साथ भेदभाव, दहेज़ उत्पीडन, राह चलते छेडछाड, बलात्कार और फिर उसकी हत्या...और न जाने किस-किस रूप  में. 

भारतीय संविधान में हर भारतीय नागरिक को समानता का अधिकार दिया गया है. अनुच्छेद चौदह से अठारह तक में इसका जिक्र है. इन अनुच्छेदों में कहाँ गया है कि धर्म, वंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जायेगा।  बावजूद इसके पिछ्ले साठ सालों में अनगिनत भारतवासियों से उनका ये अधिकार छीना  गया है और आज भी छीना जा रहा है. 


लिंगभेद की वजह से स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार का मामला हो या कोई और, आम औरत या आदमी अदालत की शरण में जाता है और न्याय की गुहार लागाता है, यह जानते और झेलते हुए कि अदालातों में तारीख दर तारीख खिंचती हैं कार्रवाइयाँ, नीचे से ऊपर तक  व्याप्त है भ्रष्टाचार, पुलिस, गुन्डों और माफिया तत्वों के बीच होती है मिलीभगत. 

इन भयानक हालातों के बीच कोई औरत फिर भी यदि दुस्साहस करके न्याय की गुहार लगाती है तो साक्ष्य और गवाह की गुलाम न्यायपालिका उसे कितना न्याय दिला पाती है, यह तो बाद की बात है, लेकिन अदालत में सरेआम पूरी स्त्री बिरादरी को अपमानित और बेईज्जत ज़रूर किया जाता है.

विडम्बना तो यह है कि यह हादसा किसी लोअर कोर्ट, सेशन कोर्ट या हाइ कोर्ट में नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट में हो जाता है. यानी छोटे मिया तो छोटे मिया बडे मिया सुभान अल्ला!

पिछ्ले दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट के कई न्यायाधीशों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने वाले और उनके खिलाफ सख्त टिप्पणी करनेवाले सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू अब खुद अपने फैसले में अपशब्द टिप्पणियाँ करने के आरोप से घिर चुके हैं.

वैवाहिक विवाद संबंधी एक याचिका का निपटारा करते हुए पीठ ने २१ अक्टूबर को कहा था कि अगर महिला ‘रखैल’ है, शारीरिक संबंधों के उद्देश्य के लिए रखी गई एक ‘नौकरानी’ है या उस महिला और पुरूष के बीच सिर्फ ‘एक रात का संबंध’ बना है तो आपराधिक दंड संहिता की धारा 125 और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत उस महिला को गुजारा भत्ता नहीं मिल सकता। 

इंदिरा जयसिंह
फैसले के बाद देश की एकमात्र महिला अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह ने 22 अक्तूबर को न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर की खंडपीठ से कहा था कि उन्हें अपने फैसले से ये अपशब्द हटाने ही होंगे। इंदिरा जयसिंह की इस टिप्पणी के बाद महिलाओं के लिए काम करने वाले संगठन ‘महिला दक्षता समिति’ ने सुप्रीम कोर्ट में एक समीक्षा याचिका दायर कर उच्चतम न्यायालय से मांग की है कि वह अपने एक फैसले से ‘रखैल’, ‘नौकरानी’ और ‘एक रात का संबंध’ जैसी टिप्पणियां हटाएं क्योंकि यह महिलाओं का अपमान करने वाली टिप्पणी हैं। 

साथियो, 
अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए हैं, एक कुलपति-लेखक ने कुछ लेखिकाओं को 'छिनाल' कहा था. उनकी उस टिप्पणी पर मीडिया और सडक पर काफी बवाल मचा था. अब माननीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सरेआम अदालत में ‘रखैल’, ‘एक रात का संबंध’, एक ‘नौकरानी’  जैसे शब्द इस्तेमाल कर रहे हैं. क्या यह  हिन्दुस्तान की पचास करोड औरतों का अपमान नहीं है?

  • यदि पुरुषवादी मानसिकता वाले हिन्दी लेखक की स्त्री विरोधी टिप्पणी पर हाय-तौबा मच सकती है तो जज साब की टिप्पणी पर क्यों नहीं?
  • क्या घर से लेकर सड़क तक और दफ्तर से लेकर अदालत तक में बार-बार अपमानित, बेईज्ज़त और ज़लील करने के लिए ही होती है स्त्री?

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