लोग धीरे-धीरे कमोडिटी बनते चले गए : बद्री रैना ने शशिकांत से कहा
चार साल पहले मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से रिटायर हुआ। आज के ग्लोबल वर्ल्ड में जो मूवमेंटस चल रहे हैं उन पर देश-विदेश के जर्नल्स में लेख लिखता हूं। पीछे करीब एक साल तक बीमार रहा। उस दौरान घर बैठे लिखने का काम किया। तबीयत ठीक रहती है तो देश के विभ्न्नि हिस्सों में चल रहे सामाजिक आंदोलनों में भी शरीक होता हूं। 1958-59 में मैं दिल्ली आया था। उस वक्त दिल्ली में इतनी कारें नहीं थीं। मोबाइल फोन नहीं थे। कंप्यूटर नहीं थे। इतना बाजारीकरण नहीं था। यह कहना चाहिए कि उस वक्त सोच के केंद्र में लोग होते थे, मनुष्यता होती थी लेकिन आज उनकी जगह कंज्यूमरिज्म ने ले ली है। पिछले 30-40 साल में हिंदुसतान में कैपिटलिज्म काफी तेजी से बढ़ा और लोग धीरे-धीरे कमोडिटी बनते गए। उस वक्त के लोगों में एक-दूसरे को सुनने का जो धैर्य होता था वो भी धीरे-धीरे खत्म होता गया। लोग अपने-अपने दड़बों में घुसते चले गए। जो नया मध्य वर्ग बना वो एकाकी हो गया। बच्चे मां-बाप से दूर हो गए। उसकी जगह धर्मांधता ने ले ली। कैपिटलिज्म और धर्मांधता का जो समन्वय हुआ उसका खमियाजा आज हमारे सामने है। आज के मध्य वर...