भ्रष्टाचार के खिलाफ नई पीढ़ी आवाज उठाए : टी एस आर सुब्रमण्यम ( पूर्व कैबिनेट सचिव, भारत सरकार)

कैबिनेट सेक्रेटरी के पद पर से रिटायर हुए आज मुझे 12 साल हो गए हैं। 72-73 साल की उम्र में भी मैं आज दिल्ली के पड़ोस नोएडा में रहते हुए 3-4 चैरिटी आर्गनाइजेशन से जुड़कर सोसायटी के डेवलपमेंट के लिए काम कर रहा हूं। अभी मैं एक कैनेडियन एनजीओ "मैक्रो न्यूट्रीशन" का चेयरमैन हूं। 
हमारा एक स्कूल यूपी के बुलंदशहर जिले में में सिकंदराबाद के पास चल रहा है। अभी हमने आस-पास के गांव-देहात के 200 गरीब बच्चे लिए हैं। दूसरा स्कूल हम सीतापुर में खोलने जा रहे हैं। उसके बाद एक और स्कूल गोरखपुर खोलेंगे। इन स्कूलों में हम हर साल 6000 बच्चे लेंगे और उन्हें देश के अच्छे और महंगे स्कूलों जैसी शिक्षा देंगे। अभी हम कंप्यूटर खरीदने के बारे में सोच रहे हैं। 
हमारा मानना है कि हमारे देश में गांवों के बच्चों को मौके नहीं मिलते हैं। यदि उन्हें मौके दिए जाएं तो वे बहुत अच्छा कर सकते हैं। यह हौसला मेरे भीतर भारती प्रशासनिक सेवा में ईमानदारी और मेहनत से काम करते हुए आया है।
 तमिलनाडु में तंजावुर से तमिल मीडियम में स्कूलिंग करने के बाद मैं कलकता युनिवर्सिटी आ गया। वहां अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाई होती थी। शुरू में थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन छः महीने में मैं खुद को एडजस्ट कर लिया। उसके बाद लंदन के इंपीरियल कालेज गया। वहीं से मैंने 1961 में आईएस की परीक्षा दी और सलेक्ट हो गया। मुझे यूपी कैडर मिला था। 
मसूरी के एकेडमी में ट्रेनिंग के बाद मेरी पहली पोस्टिंग मुरादाबाद में एडिशनल एसडीएम प्रोबेनर के तौर पर हुई। आज तो मैं अच्छी तरह हिंदी बोल लेता हूं, उन दिनों हिंदी एकदम नहीं आती थी। पहले सोचा कहां आकर फंस गया, लेकिन धीरे-धीरे मालूम पड़ा कि फील्ड में काम करने का अलग मजा है। उसके बाद पर्सनल सेक्रेटरी बनकर लखनउ आया। वहां से 1979 में कामर्स मिनिस्ट्री में सेक्रेटरी बना।
1983 में गैट, डब्ल्यूटीओ में जेनेवा गया। 5-6 साल वहां रहकर 1990 में जब वापस भारत आया तो फिर यूपी में मुझे डिस्इन्वेस्टमेंट सेक्रेटरी बनाया गया। फिर यूपी में ही कृषि उत्पादन आयुक्त बना। यूपी जैसे कृषि प्रधान राज्य में इस पद पर रहते हुए मैंने किसानों की पानी; बिजली, बीज आदि की दिक्कतें दूर करने के लिए काफी मेहनत की। उसके बाद में टेक्सटाइल मिनिसट्री में सेक्रेटरी बनकर दिल्ली आ गया।

कुछ ही महीने बाद बाबरी मस्जिद की घटना घटी। तब मुझे यूपी के चीफ सेक्रेटरी का पद संभालने को कहा गया। उस राजनीतिक गहमागहमी के माहौल में मैंने लखनऊ में रहकर काम किया। सालभर बाद वहां मुलायम सिंह की सरकार बनी। सितंबर में मुझे फिर से वापस कपड़ा मंत्रालय में भेजा गया। वहीं से मैं अगस्त 1996 men चीफ सेक्रेटरी बना और
31 मार्च 1998 को रिटायर हुआ।
आजकल सोशल वर्क के साथ-साथ मैं दो किताबें भी लिख रहा हूं। मेरा मानना है कि पिछले 60 सालों में देश के अपर और टॉप क्लास के 20 प्रतिशत लोगों ने फायदे उठाए हैं बाकी 80 प्रतिशत पीछे रह गए हैं। 
सक्सेना कमिटी और तेंदुलकर कमिटी की रिपोर्टें बताती हैं कि देश में आज करीब 60 करोड़ लोग गरीब हैं। हमारे देश में आज प्राइमरी एजुकेशन, प्राइमरी हेल्थ की सबसे खराब हालत है। यही हाल रहा तो 15-20 साल बाद इन अनपढ़ और बीमार लोगों के सहारे हम कैसे आगे बढ़ेंगे. 
इमरजेंसी के बाद देश में राजनीति में ऐसे लोग आए हैं जिनका उद्देश्य सोशल वर्क करना कम और पैसे कमाना ज्यादा है। ब्यूरोक्रेशी में भ्रस्टाचार भी इन्हीं के कारण फैला है। हमने अपने नेताओं को भगवान बना लिया है। अमेरिका और ब्रिटेन में ऐसा नहीं है। भ्रष्टाचार का सबसे बुरा असर गरीब और आम आदमी पर पड़ता है। इसके खिलाफ नई पीढ़ी को आवाज उठाना चाहिए।
(11 फरवरी 2010, दैनिक भास्कर, नई दिल्ली में प्रकाशित)

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