दौलत के पीछे भाग रही है नई पीढ़ी : प्रकाश सिंह, पूर्व पुलिस महानिदेशक, बी.एस.एफ. To शशिकांत

सन 1994 में मैं सीमा सुरक्षाबल के डीजी के पद से रिटायर हुआ। उससे पहले मैंने उत्तर प्रदेश और असम में डीजी के पद पर रहकर देश की सेवा की। आजकल अखबारों में डिमांड पर लिखता रहता हूं। 74 साल की उम्र में आज के जमाने को देखता हूं तो लगता है कि इस समय में सबसे ज्यादा मानवीय मूल्यों का ह्रास हुआ है। चाहे राजनीति हो या प्रशासन या नागरिक समाज- हर तरफ यह ह्रास दिख रहा है।

हमारे जमाने के नेताओं, अफसरों और प्रबुद्ध नागरिकों में देश सेवा, समाज सेवा को लेकर एक जज्बा होता था। आज की नई पीढ़ी सत्ता और दौलत के पीछे भाग रही है। यह पीढ़ी जल्दी से जल्दी अधिक से अधिक संपत्ति जमा करने लिए उतावली है। इस कारण हमारा पारिवारिक-सामाजिक ढांचा कमजोर हो रहा है। सामूहिक परिवार टूट रहे हैं, एकल परिवार का प्रचलन बढ़ रहा है, और अब तो पति-पत्नी के बीच के रिश्ते भी प्रभावित होने लगे हैं। 

यह सच है कि देश अपनी ताकत पर तरक्की कर रहा है लेकिन आज हमारा राजनीतिक ढांचा पूरी तरह चरमरा गया है। आज के नेता दलगत, क्षेत्रीय, जातीय और धार्मिक राजनीति का खेल खेल रहे हैं। चुनाव जीतने के बाद जनता को भूलकर पैसे बनाने लगते हैं और परिवारवाद रास्ते पर चल पड़ते हैं। इन्हें देखकर नहीं लगता कि ये देश को महाशक्ति बनाने का सपना देख रहे हैं। उनकी यह हरकत लोकतांत्रिक मूल्यों के भी खिलाफ है।

शिवसेना राजनीति का भयानक खेल खेल रही है। बाल ठाकरे शाहरुख खान और आमिर खान को 'टू इडियट्स' कह रहे हैं। इससे मुंबई और देश में दंगा फैल सकता है। यह मराठी मानुस के नाम पर कर रहे हैं। ये नगा विद्रोहियों और कश्मीरी आतंकवादियों की तरह देश में अलगाव पैदा कर रहे हैं। ऐसे लोगों को रास्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जेल में बद कर देना चाहिए।

1959 में आइपीएस में मेरा चयन हुआ था। मुझे उ उत्तर प्रदेष कैडर मिला था। ट्रेनिंग करने के बाद जब मैं ज्वाइन करने आया तो उस वक्त मुझे पहली बार दो वरिष्ठ अधिकारियों का नाम बताया गया और कहा गया कि ये दोनों बेईमान हैं। इनसे आपको बचकर रहना है। ये कोई 1962-63 की बात है। यानी उस वक्त बेईमान अफसरों को उंगलियों पर गिना जाता था, आज ईमानदार अफसरों को ढूंढना पड़ता है। 100-50 करोड़ की संपति वाले ढेर सारे अफसर आज आपको मिल जाएंगे।

भ्रष्टाचार आज हमारे देश के लोकतांत्रिक ढांचे को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। आज बहुत से नेता और आइएएस-आइपीएस अफसर वर्दी पहनकर माफियाओं के साथ उनके गोरखधंधों में संलिप्त हैं। इससे देष की डेवलपमेंट प्लानिंग तो प्रभावित हो रही है, सोशल डेमोक्रेशी भी खत्म होती जा रही है। सरकारी स्तर पर डेवलपमेंट की योजनाएं तो बनती हैं लेकिन भ्रस्टाचार की वजह से वे कागजों पर ही रह जाती हैं।

जंगल और जमीन के वाजिब हकदारों को बेदखल कर दिया जाता है। इसमें मुंशी, पटवारी, थानेदार से लेकर कलेक्टर तक की मिलीभगत होती है। यानी आज हमारा पूरा प्रशासनिक तंत्र खोखला हो गया है। चैतरफा अन्याय, असमानता, शोषण की घटनाएं काफी बढ़ गई हैं। नक्सलवाद इसके विरुद्ध उठनेवाली एक आवाज है। प्रशासनिक ताकत से आप कुछ देर के लिए इसे दबा सकते हैं लेकिन अंततः ये समस्याएं दूर करनी ही होगी। देश की प्रगति के लिए पुलिस और नागरिकों संबंध में सुधार भी जरूरी है।
(दैनिक भास्कर, नई दिल्ली, 4 फरवरी, 2010 प्रकाशित)

टिप्पणियाँ

  1. prakash ji ko barabar padhti hi hun ........unhone apni kalam ko bhi apna hathiyaar hi samjha lagataar ....,aaj ke is uttar-aadhunik samay me jab manviy mulyon ka koi mulya nhi hai to takleef to hoti hi hai .

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