दोस्तो, बशीरबद्र साहब ने कभी फरमाया था -

"कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से

ये नए मिजाज़ का शहर है ज़रा फासले से मिला करो।"

इधर हमारे बड़े भाई निदा फाजली साहब फरमा रहे हैं -

"बात कम कीजे जहानत को छुपाते रहिये

ये नया शहर है कुछ दोस्त बनाते रहिये।"

"
दुश्मन लाख सही ख़त्म कीजे रिश्ता
दिल मिले या मिले हाथ मिलाते रहिये।"

"
कभी यूं भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन
बातों को खुद नहीं समझे औरों को समझाया है।"

"हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी
जिसको भी देखना हो कई बार देखना।"

"घर को खोजे रात-दिन घर से निकला पाँव
वह रास्ता ही खो दिया जिस रस्ते था गाँव।"


टिप्पणियाँ

  1. maza ayaa aap ke is lekha par nida ji ko dekh kar ....
    is par mujhe bhi nida ji ne kabira ke dohe yaad dila diye .
    sai itna dijiye, ja me kutum samaye
    main bhi bhuka na rahu , sadhu na bhukha jaye.

    to aap ne to mang liya ab khaeye or khilaeye

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिन्दी भाषा और साहित्य 'क' (दिल्ली वि.वि. के बी.ए. प्रोग्राम, प्रथम वर्ष के उन विद्यार्थियों के लिए जिन्होंने 12वीं तक हिन्दी पढी है.) लेखक : डॉ शशि कुमार 'शशिकांत' / डॉ. मो. शब्बीर, हिंदी विभाग, मोतीलाल नेहरु कॉलेज, दिल्ली वि.वि., दिल्ली, भारत.

हिन्दी भाषा और साहित्य 'ख' (दिल्ली वि.वि. के बी.ए. प्रोग्राम, प्रथम वर्ष के उन विद्यार्थियों के लिए जिन्होंने 10वीं तक हिन्दी पढी है.) लेखक : डॉ शशि कुमार 'शशिकांत' / डॉ मो. शब्बीर, हिंदी विभाग, मोतीलाल नेहरु कॉलेज, दिल्ली वि.वि., दिल्ली, भारत.

चाहे दक्षिण, चाहे वाम, जनता को रोटी से काम: नागार्जुन