सामूहिक मौत की आशंका और खौफ




तारीख़ १ सितम्बर २००८- प्राइम टाइम का वही वक्त- टेलीविजन की दुनिया में यह पदावाली ख़ास अहमियत रखती है जब सभी न्यूज और इंटरटेनमेंट चैनल उस दिन की बेस्ट खबरें या बेस्ट प्रोग्राम पेश कर ज्यादा से ज्यादा टीआरपी बटोरने की कोशिश करते हैं।यह वह वक्त होता है जब ज्यादातर लोग दिन भर की भागदौड़ के बाद अपने अपने काम निपटाकर घर लौट ते हैं और आमतौर पर टेलीविजन देखते हैं।

दिन भर घर से बाहर रहने के बाद मैं भी शाम को घर लौटा। हाथ मुंह धोकर चाय बनाई और चाय की चुश्कियाँ लेतेहुए टेलीविजन ऑन किया.देश दुनिया में दिलचस्पी होने की वजह से जब भी टेलीविजन देखता तो अमूमन किसी न्यूज़ या डिस्कवरी चैनल पर जाकर हीमेरा रिमोट रुकता है। आज भी रुका। इक्कीस इंच के मेरे टेलीविजन के स्क्रीन पर खूनी लाल रंग में अंगरेजी मेंलिखे ब्रेकिंग न्यूज़ ने दस्तक दी। न्यूज़ थी पाकिस्तान ने परमाणु बम से लैस मिसाइलें तैनात कीं भारत से महज़ २०० किलोमीटर दूर तैनात हैं परमाणु मिसाइलें एक अमेरीकी वैज्ञानिक का दावा पाकिस्तान के पास हैं ९० परमाणु बम कराची से १२ किलोमीटर दूर बनकर में रखे हैं परमाणु बम

टेलीविजन स्क्रीन की पत्ती पर आती जाती इस ख़बर के सामने बैठे दर्शक के दिलोदिमाग पर अपनी छाप छोड़ चुकी थी। वो तेज़ तेज़ धड़कने लगा था। काफी देर तक मेरी आँखें टेलीविजन के स्क्रीन पर ही जमीं रहीं शून्य में। फिल्मों नाटकों और पत्र पत्रिकाओं में देखी, पढी वर्त्तमान सभ्यता के इतिहास की सबसे भयानक तस्वीरें आंखों के सामने नाचने लगीं।

रोजमर्रा की इंसानी जिंदगी में तारीखें बड़ी अहमियत रखती हैं लेकिन कोई कोई तारीख़ इतिहास के पन्नों को लहू से इतना रंग देती हैं की उस तारीख़ से ही हम डरने लगते हैं। दुर्भाग्यवश ऑस दिन वही तारीख़ थी। ठीक सत्तर साल पहले आज ही के दिन द्वीतीय विश्व युद्ध शुरू हुआ था और आज से ठीक बीस इकीस दिन पहले अमेरिका दवारा हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने की पैंसठवीं बरसी हमने मनाई थी।

बेडरूम में रखे टेलीविजन के स्क्रीन पर चल रही ब्रेकिंग न्यूज़ आज की मनहूस तारीख़ के साथ मिलकर खौफ को और बढ़ा रही थी। मन में परमाणु बम के हमले से जुडी तरह तरह की आशंकाएं पैदा हो रही थी। उसके बारे में पढी सूनी घटनाएँ उनसे जुड़े भयानक से भयानक चित्र एक एक कर साक्षात् हो रहे थे। वियतनाम युद्ध का वो भयानक चित्र आंखों के सामने था जिसमें हमले के बाद आग से जलती एक निर्वस्त्र लडकी बेतहाशा भाग रही है और थीं भोपाल गैस त्रासदी पर पढी वो पंक्तियाँ जब उल्टियां करते बेबश लाचार लोग जान बचाने की कोशिश कर रहे हैं। और आज से कोई आठ साल पहले अमेरिका में ११ सितम्बर की दर्दनाक त्रासदी हुई थी। और भी बहुत सारे डरावने दृश्य। और फ़िर हमारी दिल्ली तो सबसे पहले निशाने पर है। पूरा उत्तर भारत रेगिस्तान बन जाएगा युद्ध के वक्त सामने आई इस तरह की धमकियों से जुडें ख़बरों अस्वाहों से जुडें दुर्खियाँ आंखों कानों में गूँज रही थीं।

इतिहास ने यदि ख़ुद को दोहराया तो क्या होगा। हमारी दिल्ली आज जैसे है उसका हश्र क्या होगा। सामूहिक मौत के हादसे की आशंका और उस से उपजी खौफ का वो मंजर मेरी आंखों के सामने काफे देर तक नाचता रहा। पलक झपकने के साथ खौफ के साए से जब बाहर आया तो कोई काम करने का मन नहीं कर रहा था।

टिप्पणियाँ

  1. ankahe haadso ke chakkar me aap na chakrana . ye hadse kisi insaan ke future ki tarah hi parchhai ban aap ke piche bhagte rahene . jiski ummid hoti he wo agar mila jaye to log bhagwan ko yaad karna hi bhul jayenge. aap jo chahate he aap ko us se alag hi milta he jis me aap samay ke saat samjhota kar lete he . fir kya bus yaad rehti he to tarikh .

    जवाब देंहटाएं
  2. achchha laga aap ko pad kar maza aya esa maza jisne hume itihaas ke panno me dubo diya ...
    Atisundaram
    http://humsafar-tarana.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिन्दी भाषा और साहित्य 'क' (दिल्ली वि.वि. के बी.ए. प्रोग्राम, प्रथम वर्ष के उन विद्यार्थियों के लिए जिन्होंने 12वीं तक हिन्दी पढी है.) लेखक : डॉ शशि कुमार 'शशिकांत' / डॉ. मो. शब्बीर, हिंदी विभाग, मोतीलाल नेहरु कॉलेज, दिल्ली वि.वि., दिल्ली, भारत.

हिन्दी भाषा और साहित्य 'ख' (दिल्ली वि.वि. के बी.ए. प्रोग्राम, प्रथम वर्ष के उन विद्यार्थियों के लिए जिन्होंने 10वीं तक हिन्दी पढी है.) लेखक : डॉ शशि कुमार 'शशिकांत' / डॉ मो. शब्बीर, हिंदी विभाग, मोतीलाल नेहरु कॉलेज, दिल्ली वि.वि., दिल्ली, भारत.

चाहे दक्षिण, चाहे वाम, जनता को रोटी से काम: नागार्जुन