नौकरी मिली नहीं, पुरस्कार से क्या...?: उदय प्रकाश

हिंदी के बहुचर्चित कथाकार और कवि उदय प्रकाश को आज साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा  है. यह पुरस्कार उन्हें उनकी बेहद मार्मिक बहुचर्चित लम्बी कहानी "मोहनदास" के लिए दिया जा रहा है.

अब चूँकि "मोहनदास" पुरस्कृत की जा चुकी है तो इस बात का खुलासा हो जाना चाहिए कि "मोहनदास" उदय प्रकाश की आत्मकथात्मक कृति है.

बहुत कम लोग जानते हैं कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं और विश्व की आधी दर्जन भाषाओं में अनूदित हो चुकी "मोहनदास" कहानी उदय प्रकाश ने तब लिखी थी जब दिल्लीविश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफ़ेसर के पद के लिए उन्होंने इंटरव्यू दिया था और उन्हें वह नौकरी नहीं दी गई थी. 

तब उदय प्रकाश को नौकरी इसलिए नहीं दी गई थी क्योंकि चयन समिति के सदस्य को इस बात पर गहरा ऐतराज था कि उदय प्रकाश के पास पीएच.डी की डिग्री नहीं है. 

हालांकि तबतक उदय प्रकाश की कहानियों और कविताओं पर देश भर के विश्वविद्यालयों में आधे दर्जन से ज़्यादा पीएच.डी और एक दर्जन से ज़्यादा एम.फिल की उपाधियाँ बांटी जा चुकी थीं. इसके अलावा कई देसी-विदेशी विश्वविद्यालयों के सिलेबस में उनकी कहानियां जगह पा चुकी थीं और वहां पढ़ाई जा रही थीं.   
वह उदय प्रकाश की ज़िन्दगी का वो दौर था जब वे कई महीने तक बोन टीबी की बीमारी से ग्रस्त थे, ठीक से फ्रीलांसिंग भी नहीं कर पा रहे थे और आर्थिक तंगहाली में घर-परिवार चलाने में भी दिक्कत हो रही थी.

उदय प्रकाश को उन दिनों उस नौकरी की सख्त दरकार थी और उसके लिए वे डीजर्व भी करते थे, लेकिन संवेदनाओं की मलाई खानेवाले हिंदी के सत्ता प्रतिष्ठान पर काबिज शातिर लोग इतने निर्मम और मोटी खाल के थे कि सबने मिलकर हिंदी के इस बेहद संकोची लेकिन नैतिक और प्रतिभाशाली रचनाकार को दलितों और अछूतों की तरह लगभग देशनिकाला कर दिया था.

हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के संवेदनशील पाठक को यह जानकार आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि अपनी निजी जि़न्दगी में घटित एक बेहद दर्दनाक और अनैतिक हादसे को आधार बनाकर उदय प्रकाश ने एक ऐसा महा-आख्यान (मोहनदास) रच दिया जिसको पढ़ते हुए न जाने कितने पाठक  फूट-फूट कर रोए हैं. 

कभी विचारधारा की गिरोहबंदी करके तो कभी सत्ता के गलियारे में तीन तिकड़म करके विश्वविद्यालयों, अकादमियों और विभिन्न सरकारी संस्थाओं में पहले ख़ुद घुसने और फिर अपने चेलों-चमचों, चापलूसों, भाई-भतीजों, बेटी-दामादों को फिट कराने की जुगत में लगे हिंदी के बहुतेरे भ्रष्ट, अनैतिक और मीडियाकर लेखकों, अध्यापकों की छाती पर आज उदय प्रकाश को साहित्य अकादेमी पुरस्कार दिए जाने की ख़बर के बाद सांप लोट रहा है.

उदय प्रकाश आज भी परछाई बनकर मोहनदास के साथ खड़े हैं. ताकि फिर कोई किसी और मोहनदास के साथ ऐसा अत्याचार न कर सके. शायद इसीलिए बड़े रचनाकार हैं उदय प्रकाश और पाठक उन्हें बेहद प्यार करते हैं, वरना पुरस्कृत होने मात्र से लेखक बड़ा नहीं हो जाता..... तभी तो पुरस्कार पाकर बहुत खुश नहीं हैं उदय प्रकाश !

दरअसल, जब किसी के साथ अन्याय होता है, और होता चला जाता है.....तब पैदा होते हैं उदय प्रकाश ! 
 

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