जनता परेशान...सरकार पहलवान!!!
‘‘मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की।’’ यह कहावत सरकार के महंगाई नियंत्रण के प्रयासों पर सटीक बैठ रही है।
महंगाई पर लगाम लगाने के लिए सरकार सच में कोई प्रयास कर भी रही है, इसमे संदेह ही संदेह है। लेकिन दिखावे के लिए ही सही वह जो भी प्रयास कर रही है, फिर भी महंगाई रुकने का नाम ही नही ले रही है। भागी जा रही है। भागी जा रही है।
बीते शुक्रवार को जारी किए गए मुद्रास्फीति के साप्ताहिक आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। बीते हफ्ते भी बढ़ी है महंगाई। पिछले महीनों में महंगाई पर नियंत्रण के लिए सरकार ने कहने को अनेक कदम उठाए हैं। रिजर्व बैंक ने भी कई कठोर फैसले लिए हैं।
हम सबने न्यूज चैनलों पर देखा कि पिछले दिनों जब प्याज की कीमतें आसमान छू गई थीं तो दिल्ली और मुल्क के कई शहरों में मोटे व्यापारियों के गोदामों पर छापे मारे गए। लेकिन नतीजा क्या निकला? वही ढाक के तीन पात। हां, प्याज के दाम कुछ कम जरूर हो गए, और वो भी ‘सार्वभौम दुश्मन’ पड़ोसी मुल्क़ पाकिस्तान की कृपा से।
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि मुल्क की जनता पिछले कई महीनों से महंगाई से परेशान परेशान है, लेकिन सरकार में बैठे रहनुमा इस पर लगाम लगाने के बजाए जब तब उल्टी-सीधी बयान देते रहते हैं।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय ने अमेरिका के बयान को दोहराते हुए कहा कि नरेगा और अन्य सरकारी योजनाओं से गरीब लोगों की आमदनी बढ़ी है। वे ज्यादा अनाज खरीदने लगे हैं इसलिए महंगाई बढ़ी है।
हमारे कृषि मंत्री शरद पवार साहब कभी महंगाई पर नियंत्रण से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं तो कभी यह कहते हैं कि जनता महंगाई से परेशान है और किसान कहते हैं कि उन्हें लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहे। विचित्र हाल है।
कभी भाजपा पर जमाखोरी, मुनाफाखोरी और कालाबाजारी करनेवाले व्यापारियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया जाता था। सरकार को आज नही तो कल यह समझना ही पड़ेगा कि आज मुल्क में जब खाद्यान्न की कोई कमी नहीं है तो फिर क्यों महंगाई बढ़ रही है।
सरकार लगता है मुग़ालते में है। अर्जन सेनगुप्ता कमिटी की रिपोर्ट के मुताबिक हिंदुस्तान के करीब पचासी करोड़ लोगों की दैनिक आमदनी पचास रुपये से भी कम है। इस भीषण महंगाई के दौर में किन-किन दुश्वारियों का सामना कर रहे हैं ये ग़रीब लोग, सरकार को इनकी तकलीफ़ों से कोई लेना-देना नहीं, क्योंकि सरपट दौड़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी है चालीस करोड़ मध्यवर्ग।
वह मध्यवर्ग जो कंज्यूमर है। उस पर तो महंगाई का कोई असर नहीं। होता तो बाज़ार में इतनी रौनक न होती। धंधा इतना तेज़ न चलता।
व्यापारी खुश।
मध्यवर्ग खुशहाल।
बिचौलिये, जमाखोर, कालाबज़ारी, दलाल, माफिया और पूंजीपति मालामाल।
तो अफसर, नेता और सरकार पहलवान।
‘‘और बाकी ग़रीब जनता???’’
बीते शुक्रवार को जारी किए गए मुद्रास्फीति के साप्ताहिक आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। बीते हफ्ते भी बढ़ी है महंगाई। पिछले महीनों में महंगाई पर नियंत्रण के लिए सरकार ने कहने को अनेक कदम उठाए हैं। रिजर्व बैंक ने भी कई कठोर फैसले लिए हैं।
हम सबने न्यूज चैनलों पर देखा कि पिछले दिनों जब प्याज की कीमतें आसमान छू गई थीं तो दिल्ली और मुल्क के कई शहरों में मोटे व्यापारियों के गोदामों पर छापे मारे गए। लेकिन नतीजा क्या निकला? वही ढाक के तीन पात। हां, प्याज के दाम कुछ कम जरूर हो गए, और वो भी ‘सार्वभौम दुश्मन’ पड़ोसी मुल्क़ पाकिस्तान की कृपा से।
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि मुल्क की जनता पिछले कई महीनों से महंगाई से परेशान परेशान है, लेकिन सरकार में बैठे रहनुमा इस पर लगाम लगाने के बजाए जब तब उल्टी-सीधी बयान देते रहते हैं।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय ने अमेरिका के बयान को दोहराते हुए कहा कि नरेगा और अन्य सरकारी योजनाओं से गरीब लोगों की आमदनी बढ़ी है। वे ज्यादा अनाज खरीदने लगे हैं इसलिए महंगाई बढ़ी है।
हमारे कृषि मंत्री शरद पवार साहब कभी महंगाई पर नियंत्रण से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं तो कभी यह कहते हैं कि जनता महंगाई से परेशान है और किसान कहते हैं कि उन्हें लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहे। विचित्र हाल है।
कभी भाजपा पर जमाखोरी, मुनाफाखोरी और कालाबाजारी करनेवाले व्यापारियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया जाता था। सरकार को आज नही तो कल यह समझना ही पड़ेगा कि आज मुल्क में जब खाद्यान्न की कोई कमी नहीं है तो फिर क्यों महंगाई बढ़ रही है।
सरकार लगता है मुग़ालते में है। अर्जन सेनगुप्ता कमिटी की रिपोर्ट के मुताबिक हिंदुस्तान के करीब पचासी करोड़ लोगों की दैनिक आमदनी पचास रुपये से भी कम है। इस भीषण महंगाई के दौर में किन-किन दुश्वारियों का सामना कर रहे हैं ये ग़रीब लोग, सरकार को इनकी तकलीफ़ों से कोई लेना-देना नहीं, क्योंकि सरपट दौड़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी है चालीस करोड़ मध्यवर्ग।
वह मध्यवर्ग जो कंज्यूमर है। उस पर तो महंगाई का कोई असर नहीं। होता तो बाज़ार में इतनी रौनक न होती। धंधा इतना तेज़ न चलता।
व्यापारी खुश।
मध्यवर्ग खुशहाल।
बिचौलिये, जमाखोर, कालाबज़ारी, दलाल, माफिया और पूंजीपति मालामाल।
तो अफसर, नेता और सरकार पहलवान।
‘‘और बाकी ग़रीब जनता???’’
‘‘स्स्स्साली जाए भाड़ में!!!’’
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