अवैध है अक्षरधाम मंदिर और खेलगाँव!
कॉमनवेल्थ खेलगाँव, दिल्ली |
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने शुक्रवार को यह मान लिया कि अक्षरधाम मंदिर को बिना पर्यावरण मंजूरी के ही निर्माण की अनुमति दे दी गई थी। साथ ही उन्होंने राष्ट्रमंडल खेल गांव को मिली मंजूरी पर भी सवाल उठा दिया. इस बीच दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी कहा है कि यमुना नदी के बिल्कुल किनारे बने अक्षरधाम मंदिर को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने मंजूरी दी थी।
पर्यावरणविद राजधानी दिल्ली में यमुना किनारे अवैध तरीके से अक्षरधाम मंदिर और राष्ट्रमंडल खेल गांव दोनों के बनने का लगातार विरोध कर रहे थे। पर्यावरणविदों का कहना था कि इससे नदी के आस-पास के पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा। राजेंद्र सिंह जब खेलगांव के सामने महीनों धरने पर बैठे थे तब आते-जाते फुरसत मिलने पर मैं भी बस से उतरकर उनके साथ बैठता था. लेकिन तब विरोध की वे आवाजें दबा दी गई थीं. क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में ऐसा कोई स्तम्भ है जो संविधान, क़ानून और जनता के प्रति जवाबदेह है, जो सम्बंधित सरकारी नुमाइंदे से ये सवाल पूछे कि इसे अनजाने में की गई गलती मानकर कैसे माफ़ किया जाए जब महीनों से सैकड़ों पर्यावारण प्रेमी धरने पर बैठकर विरोध करते रहे.
लेकिन जयराम रमेश ने यह क्यों कहा कि अब अक्षरधाम मंदिर और राष्ट्रमंडल खेल गांव को ढहाया नहीं जा सकता। जब 10 रुपये की चोरी के लिए मुल्क़ के एक मामूली आदमी को संविधान और क़ानून के उल्लंघन करने के लिए सज़ा सुनाई जा सकती है, दिल्ली के विकास और यहाँ की नागरिक सुविधाएँ बहाल करने में बड़ी भूमिका निभानेवाले गरीब मजदूरों की झुग्गी-झोपड़ियों पर यदि बुलडोजर चलाया जा सकता है, तो मुल्क़ के क़ानून की किताब में दर्ज पर्यावरण नीति को नज़रंदाज़ कर बनाए गए किसी अवैध ढाँचे को ढहाकर उस गलती को दुरुस्त क्यों नहीं किया जा सकता, भले वह कोई मंदिर या खेलगांव ही क्यों न हो.
क्या हिन्दुस्तान में लोकतंत्र अब भी महफूज़ है? यदि है तो दिल्ली और देश की जनता को यह जवाब चाहिए कि क्या अवैध तरीके से झुग्गी-झोपड़ी बनाना यदि अपराध है और उसे तोड़ा जा सकता है तो अवैध रूप से बनाए गए अक्षरधाम मंदिर और खेलगांव को क्यों नहीं? इस सवाल का जावाब कौन देगा? मुल्क़ की कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका या प्रेस?
हिन्दुस्तान की आम जनता जानती है कि राजग सरकार के स्वकथित "लौहपुरुष" लालकृष्ण आडवाणी के हस्तक्षेप के बाद आनन-फानन में तमाम कायदे-क़ानून को ताक पर रखकर पहले दिल्ली में यमुना किनारे की ज़मीन पर युद्ध स्तर पर अक्षरधाम मंदिर बना दिया गया और उसके बाद कॉमनवेल्थ खेल गाँव.
बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहनेवाला यह इलाका अक्षरधाम मंदिर और खेलगाँव बनने के बाद आज चमक गया है. यमुना के किनारे जिस ज़मीन पर अवैध रूप से बना है यह मंदिर वहां मेरे आँखों के सामने हरी-हरी ताज़ी सब्जियां उपजती थीं, जिन्हें दिल्लीवाले खरीदकर सेहत बनाते थे, आज यह दिल्ली के एक बड़े पर्यटन स्थल में तब्दील हो चुका है. इसी तरह घोटाले कर बनाए गए खेलगाँव के फ्लैटों पर दिल्ली के विधायकों और बड़े-बड़े नौकरशाहों की नज़र है. तीन-चार करोड़ के बताए जा रहे हैं ये फ्लैट्स.
मैं पिछले पांच-छः साल से ठीक अक्षरधाम मंदिर के सामने मयूर विहार फेज़-1 की दिल्ली पुलिस सोसायटी में किराए पर रह रहा हूँ. मेरी छत से दिखता है अक्षरधाम मंदिर. लेकिन आज तक मैं कभी उसे देखने नहीं गया. इसी तरह, घपले और घोटाले की ख़बरों के बीच मेरी आँखों के सामने बना है यह खेल गाँव. जब खेल शुरू हुआ तो गाँव चला गया. नहीं गया देखने एक दिन भी खेल, जो मेरे घर के सामने हो रहा था.
क्योंकि मैं पर्यावरण का बलात्कार कर बनाए गए दोनों निर्माणों के खिलाफ़ हूँ. खून खौलता है इन्हें देख कर. ग़ालिब ने कहा है- "रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल, जो आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?" दिल्ली, देश और दुनिया के हर पर्यावरण प्रेमी इंसान का खून खौलना चाहिए!
आज जबकि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने मान लिया है कि अक्षरधाम मंदिर और राष्ट्रमंडल खेलगांव को बिना पर्यावरण मंजूरी के ही निर्माण की अनुमति दे दी गई थी, तो सभी पर्यावरणवादियों को सरकार पर यह दबाव डालना चाहिए कि अवैध रूप से बनाए गए ये दोनों निर्माण ढहाए जाने चाहिए, क्योंकि पर्यावरण का सवाल यमुना नदी की संस्कृति ही नहीं दिल्ली, देश के लोकतंत्र से जुड़ा एक अहम सवाल है, और मानव सभ्यता से जुड़ा हुआ एक गंभीर मसला भी.
पर्यावरणविद राजधानी दिल्ली में यमुना किनारे अवैध तरीके से अक्षरधाम मंदिर और राष्ट्रमंडल खेल गांव दोनों के बनने का लगातार विरोध कर रहे थे। पर्यावरणविदों का कहना था कि इससे नदी के आस-पास के पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा। राजेंद्र सिंह जब खेलगांव के सामने महीनों धरने पर बैठे थे तब आते-जाते फुरसत मिलने पर मैं भी बस से उतरकर उनके साथ बैठता था. लेकिन तब विरोध की वे आवाजें दबा दी गई थीं. क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में ऐसा कोई स्तम्भ है जो संविधान, क़ानून और जनता के प्रति जवाबदेह है, जो सम्बंधित सरकारी नुमाइंदे से ये सवाल पूछे कि इसे अनजाने में की गई गलती मानकर कैसे माफ़ किया जाए जब महीनों से सैकड़ों पर्यावारण प्रेमी धरने पर बैठकर विरोध करते रहे.
लेकिन जयराम रमेश ने यह क्यों कहा कि अब अक्षरधाम मंदिर और राष्ट्रमंडल खेल गांव को ढहाया नहीं जा सकता। जब 10 रुपये की चोरी के लिए मुल्क़ के एक मामूली आदमी को संविधान और क़ानून के उल्लंघन करने के लिए सज़ा सुनाई जा सकती है, दिल्ली के विकास और यहाँ की नागरिक सुविधाएँ बहाल करने में बड़ी भूमिका निभानेवाले गरीब मजदूरों की झुग्गी-झोपड़ियों पर यदि बुलडोजर चलाया जा सकता है, तो मुल्क़ के क़ानून की किताब में दर्ज पर्यावरण नीति को नज़रंदाज़ कर बनाए गए किसी अवैध ढाँचे को ढहाकर उस गलती को दुरुस्त क्यों नहीं किया जा सकता, भले वह कोई मंदिर या खेलगांव ही क्यों न हो.
अक्षरधाम मंदिर, दिल्ली |
हिन्दुस्तान की आम जनता जानती है कि राजग सरकार के स्वकथित "लौहपुरुष" लालकृष्ण आडवाणी के हस्तक्षेप के बाद आनन-फानन में तमाम कायदे-क़ानून को ताक पर रखकर पहले दिल्ली में यमुना किनारे की ज़मीन पर युद्ध स्तर पर अक्षरधाम मंदिर बना दिया गया और उसके बाद कॉमनवेल्थ खेल गाँव.
बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहनेवाला यह इलाका अक्षरधाम मंदिर और खेलगाँव बनने के बाद आज चमक गया है. यमुना के किनारे जिस ज़मीन पर अवैध रूप से बना है यह मंदिर वहां मेरे आँखों के सामने हरी-हरी ताज़ी सब्जियां उपजती थीं, जिन्हें दिल्लीवाले खरीदकर सेहत बनाते थे, आज यह दिल्ली के एक बड़े पर्यटन स्थल में तब्दील हो चुका है. इसी तरह घोटाले कर बनाए गए खेलगाँव के फ्लैटों पर दिल्ली के विधायकों और बड़े-बड़े नौकरशाहों की नज़र है. तीन-चार करोड़ के बताए जा रहे हैं ये फ्लैट्स.
मैं पिछले पांच-छः साल से ठीक अक्षरधाम मंदिर के सामने मयूर विहार फेज़-1 की दिल्ली पुलिस सोसायटी में किराए पर रह रहा हूँ. मेरी छत से दिखता है अक्षरधाम मंदिर. लेकिन आज तक मैं कभी उसे देखने नहीं गया. इसी तरह, घपले और घोटाले की ख़बरों के बीच मेरी आँखों के सामने बना है यह खेल गाँव. जब खेल शुरू हुआ तो गाँव चला गया. नहीं गया देखने एक दिन भी खेल, जो मेरे घर के सामने हो रहा था.
क्योंकि मैं पर्यावरण का बलात्कार कर बनाए गए दोनों निर्माणों के खिलाफ़ हूँ. खून खौलता है इन्हें देख कर. ग़ालिब ने कहा है- "रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल, जो आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?" दिल्ली, देश और दुनिया के हर पर्यावरण प्रेमी इंसान का खून खौलना चाहिए!
आज जबकि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने मान लिया है कि अक्षरधाम मंदिर और राष्ट्रमंडल खेलगांव को बिना पर्यावरण मंजूरी के ही निर्माण की अनुमति दे दी गई थी, तो सभी पर्यावरणवादियों को सरकार पर यह दबाव डालना चाहिए कि अवैध रूप से बनाए गए ये दोनों निर्माण ढहाए जाने चाहिए, क्योंकि पर्यावरण का सवाल यमुना नदी की संस्कृति ही नहीं दिल्ली, देश के लोकतंत्र से जुड़ा एक अहम सवाल है, और मानव सभ्यता से जुड़ा हुआ एक गंभीर मसला भी.
jis samay mandir ban raha tha us samay sarkar kya kar rahi thi.aaj usko todne ki baat karate hai. kitne pagal log sarkar me baithe hai.
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