कौन कर रहे हैं माओवाद का विरोध?
आदिवासी बच्चे के साथ खेलती एक माओवादी महिला |
bbchindi.com ने "माओवादियों की उगाही" शीर्षक से ख़बर दी है, "नक्सलियों के सबसे मज़बूत गढ़ माने जानेवाले छत्तीसगढ़
में व्यवसायी ही नहीं सरकारी अधिकारी भी जान के डर से माओवादियों को पैसे देते हैं."
हिंदुस्तान की पब्लिक व्यवसाइयों की जमाखोरी, सरकारी अधिकारियों की हरामखोरी, व्यवस्थापिका के नुमाइंदों की लूट, भ्रष्ट न्यायपालिका और मीडिया की करतूतों
से तबाह है. इसलिए, कौन कहता है ग़लत कर रहे हैं माओवादी?
दोगले नहीं,सच्चे गांधीवादियों को छोड़ दें तो वे कौन हैं जो माओवाद का विरोध कर रहे हैं? मनमोहनोमिक्स के कुछ हिमायती,
बहुराष्ट्रीय खनन कंपनियों के दलाल चिदंबरम के कुछ दलाल, दिल्ली, मुंबई और अन्य महानगरों-शहरों के सुविधाभोगी ब्राह्मणवादी,
जातिवादी, सुविधाभोगी मध्यवर्ग यानि उत्तर औपनिवेशिक हिंदुस्तान में मज़े ले रहे मुट्ठी भर हरामखोर लोग! इनके सताए
बहुसंख्यक हिन्दुस्तानी माओवादियों के साथ हैं.
किसी को कोई आपत्ति?
फेसबुक पर राजकुमार ने टिप्पणी की: "व्यापारी नेताओं और पार्टियों को पैसे देते हैं तो माओवादियों से नफ़रत क्यों?"
शशिकांत का जवाब: "बिल्कुल सही कहा राजकुमार जी आपने! पार्टियों को फंड कौन देते हैं? हर पार्टी के फंड में अकूत धन किस मद से आते हैं. 5 सालों में ही हर पार्टी नेताओं की संपति कई सौ गुना कैसे बढ़ जाती है? स्विस बैंक में कितने पैसे जमा हैं? लगभग सभी कंपनियों का त्रैमासिक, अर्धवार्षिक और वार्षिक मुनाफ़ा कैसे बढ़ रहा है जबकि दलित, आदिवासी, गरीब किसान-मजदूर और आम आदमी आज फटेहाली और लाचारी में जी नहीं रहा थेथरई कर रहा है. फिर क्यों न करें ये माओवादियों की हिमायत?"
और रामाज्ञा शशिधर, आलोक पांडे, प्रभात रंजन, सुयश सुप्रभ तथा राजकुमार ने इस पोस्ट को like किया.
सभी साथियों को बहुत-बहुत शुक्रिया. - शशिकांत
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