...वरना रूपम का हस्र मधुमिता शुक्ला जैसा होता!
नीतीश कुमार |
वह एक औरत है. उस पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक मुल्क़ की मुख्य प्रतिपक्षी राजनीतिक पार्टी के एक विधायक की सरेआम छुरा मारकर ह्त्या करने का आरोप है. उस विधायक की जिसने उसका यौन शोषण किया था. उसने विधायक के खिलाफ़ पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवाई थी. लेकिन न पुलिस ने और न क़ानून ने सुनी उसकी फ़रियाद. उल्टे उसे धमकाया गया और उस पर दबाव डाला गया कि वह विधायक जी पर लगाया गया आरोप वापस ले ले.
जनता के वोट से चुने गए जनप्रतिनिधियों के हाथ बड़े लम्बे होते हैं. जनप्रतिनिधि बने शातिर से शातिर अपराधी से कौन पंगा ले. ऐसे कम ही जनप्रतिनिधि हैं जिनकी इलाके के गुंडों, माफिया तत्वों, अपराधियों, दलालों से सांठ-गाँठ न हो. मामूली शख्सियत को टपकाना या उसे रास्ते से हटाना इनके बाएँ हाथ का खेल होता है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की यह विडंबना है.
धमकियों के बाद उस अकेली महिला ने आख़िरकार विधायक पर लगाया गया आरोप वापस ले लिया. यह उसका समझदारी भरा कदम था वरना उसका भी हस्र मधुमिता शुक्ला जैसा होता. कवयित्री मधुमिता शुक्ला की अपराधी से नेता बने उत्तर प्रदेश पूर्व कैबिनेट मंत्री अम
वह कोई अपराधी नहीं थी बल्कि शैक्षिक रूप से पिछड़े बिहार में शिक्षा के विकास में जुटी थी. अकेली रहती थी. इस मुल्क़ के क़ानून में किसी औरत या मर्द का अकेले रहना गैरकानूनी नहीं है. अंध परम्पराओं, दकियानूस विश्वासों और पुरुषसत्तात्मक नैतिकता के चीथड़ों में लिपटे लोग भले ऐसे शख्स को चरित्र प्रमाणपत्र देते फिरें और अकेली औरत को देख जी से लाड़ टपकाते रहें.
उस अकेली महिला के साथ भी ऐसा ही हुआ. सन 2006 में अपने स्कूल के एक कार्यक्रम में उसने विधायक जी को बतौर
राजकिशोर केसरी और रूपम पाठक |
अकेली औरत को देखकर अमूमन नामर्द का पुरुषत्व भी उफान मारने लगता है. उन्हीं में से किसी एक ने जब विधायक जी को कान में बताया कि रुपम पाठक अकेली रहती हैं तो उनकी मर्दानगी जाग उठी. फिर तो वेलेंटाइन्स डे का विरोध, राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, शुचिता, नैतिकता वगैरह-वगैरह की बातें करनेवाली राष्ट्रीय पार्टी के विधायकजी ने उस महिला का जमकर यौन शोषण किया. यानि ये सारी राजनीतिक बातें विधायक जी के हरम में दो अंगुल की योनि में घुस कर ख़त्म हो गई, जिसे उन्होंने और उनकी पार्टी के नेताओं ने चीख-चीख कर जनता को भरमाया था.
विकास और सुशासन की बदौलत अभी-अभी विधानसभा चुनाव जीतनेवाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पिछले कार्यकाल में राज्य में कितना सुशासन था, इसकी पोल खोलने के लिए यह मामला काफी है. सरकार के गठबंधन में शामिल पार्टी के विधायक पांच साल से एक अकेली महिला के साथ गुल खिलाते रहे और नीतीश कुमार बिहार के विकास और सुशासन को जूते की तरह लाठी में लटकाए सीना फुलाकर भागते रहे.
इस घटना के बाद आज नीतीश कुमार को विधायकों की सुरक्षा की चिंता है, उस महिला के साथ हुए अन्याय की नहीं. वह कौन सी मजबूरी है जो एक पढ़े-लिखे शख्स को क़ानून अपने हाथ में लेने को बाध्य करती है, जबकि अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ़ वह पुलिस और क़ानून के सामने गुहार लगा-लगा कर थक जाता है और फिर उसे मिलती है धमकी पर धमकी, या फिर उसका मुंह हमेशा के लिए बंद कर दिया जाता है.
रूपम पाठक भी हिन्दुस्तान की एक नागरिक हैं और उन्हें भी संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को दिए गए सारे अधिकार मिलने चाहिए. विधायक द्वारा किए गए उनके यौन शोषण और रूपम पाठक द्वारा पुलिस में मामला दर्ज कराने के बाद उनको मिली धमकी और उन पर दबाव डालने के मामले की जांच किए बगैर उनके खिलाफ़ विधायक की ह्त्या करने का मामला दर्ज करना एकतरफा कारवाई है.
एक जनप्रतिनिधि द्वारा एक महिला का यौन शोषण और धमकाकर मामला खत्म करवाना उतना ही गैरकानूनी है जितना सरेआम उस जनप्रतिनिधि की हत्या, और उसके बाद बिहार पुलिस और राजनीतिक कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में उस आरोपी महिला के साथ मारपीट करना. नीतीश सरकार के राज में बिहार में कितना सुशासन है इसकी परख इस बात पर निर्भर करती है कि वह बिना किसी पक्षपात के इन सारे मामलों की जांच करवाती है या नहीं!
रूपम पाठक भी हिन्दुस्तान की एक नागरिक हैं और उन्हें भी संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को दिए गए सारे अधिकार मिलने चाहिए. विधायक द्वारा किए गए उनके यौन शोषण और रूपम पाठक द्वारा पुलिस में मामला दर्ज कराने के बाद उनको मिली धमकी और उन पर दबाव डालने के मामले की जांच किए बगैर उनके खिलाफ़ विधायक की ह्त्या करने का मामला दर्ज करना एकतरफा कारवाई है.
एक जनप्रतिनिधि द्वारा एक महिला का यौन शोषण और धमकाकर मामला खत्म करवाना उतना ही गैरकानूनी है जितना सरेआम उस जनप्रतिनिधि की हत्या, और उसके बाद बिहार पुलिस और राजनीतिक कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में उस आरोपी महिला के साथ मारपीट करना. नीतीश सरकार के राज में बिहार में कितना सुशासन है इसकी परख इस बात पर निर्भर करती है कि वह बिना किसी पक्षपात के इन सारे मामलों की जांच करवाती है या नहीं!
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