ये है bbchindi.com की 'हिंदी'
" यह बीबीसी लन्दन है....!" ट्रांजिस्टर पर जब यह आवाज़ निकलने लगती थी तो आस-पास के लोग इसके इर्द-गिर्द जमा होने लगते थे. सात समंदर पार से आ रही इस आवाज़ में आख़िर ऐसा क्या जादू था? सरकारी प्रसारण सेवा 'आकाशवाणी' से ज़्यादा बीबीसी पर क्यों भरोसा करते थे लोग?
उत्तर औपनिवेशिक भारत में जनसंचार के श्रव्य माध्यम को लोकप्रिय बनाने और इसे जन-जन तक पहुंचाने में बीबीसी हिंदी सेवा की ऐतिहासिक भूमिका रही है. 20 सदी में बीबीसी हिंदी सेवा ने भाषाई पत्रकारिता के प्रसारण की एक नई भाषा गढ़ी.
उम्र के 40 वें साल में यह कहते हुए फ़ख्र हो रहा है कि बिहार के अपने गाँव में गायों-भैंसों के बीच बथान में ट्रांजिस्टर पर आस-पास के लोगों के साथ हर शाम मैं बीबीसी लन्दन के समाचार सुनता था. यकीन कीजिए, उस टूटे हुए ट्रांजिस्टर से प्रसारित समाचारों ने इस कच्चे मन पर कुछ ऐसा असर डाला कि मैं भी धीरे-धीरे ख़बरों की इसी दुनिया में दाख़िल हो गया. आज पत्रकारिता मेरा जूनून है और मेरी रोज़ी-रोटी का ज़रिया भी.
आज भी मैं लगभग रोज़ www.bbchindi.com पर जाकर समाचार सुनता हूँ, ख़बरें पढ़ता हूँ और पसंदीदा ख़बरें twitter और feshbook के साथियों के साथ बाँटता भी हूँ.
...लेकिन आज (13 मार्च,1010 ) bbchindi.com पर "दरियाई घोड़े का 'ज़ेब्रा' ब्रश" ख़बर पढ़ कर काफ़ी तकलीफ़ हुई. बीबीसी की कॉपी में इतनी भयानक अशुद्धियाँ! भाषाई पत्रकारिता के अपने 'रोल मॉडल' से ऐसी उम्मीद नहीं थी. आप ख़ुद पढ़ कर देख लीजिये!
शुक्रिया.
डॉ. शशिकांत
नोट : पीले रंग से रंगे बीबीसी के शब्द और वाक्य मेरे हिसाब से ग़लत हैं. उनकी जगह ( ) में दिए गए शब्द/वाक्य होने चाहिए थे.
उत्तर औपनिवेशिक भारत में जनसंचार के श्रव्य माध्यम को लोकप्रिय बनाने और इसे जन-जन तक पहुंचाने में बीबीसी हिंदी सेवा की ऐतिहासिक भूमिका रही है. 20 सदी में बीबीसी हिंदी सेवा ने भाषाई पत्रकारिता के प्रसारण की एक नई भाषा गढ़ी.
उम्र के 40 वें साल में यह कहते हुए फ़ख्र हो रहा है कि बिहार के अपने गाँव में गायों-भैंसों के बीच बथान में ट्रांजिस्टर पर आस-पास के लोगों के साथ हर शाम मैं बीबीसी लन्दन के समाचार सुनता था. यकीन कीजिए, उस टूटे हुए ट्रांजिस्टर से प्रसारित समाचारों ने इस कच्चे मन पर कुछ ऐसा असर डाला कि मैं भी धीरे-धीरे ख़बरों की इसी दुनिया में दाख़िल हो गया. आज पत्रकारिता मेरा जूनून है और मेरी रोज़ी-रोटी का ज़रिया भी.
आज भी मैं लगभग रोज़ www.bbchindi.com पर जाकर समाचार सुनता हूँ, ख़बरें पढ़ता हूँ और पसंदीदा ख़बरें twitter और feshbook के साथियों के साथ बाँटता भी हूँ.
...लेकिन आज (13 मार्च,1010 ) bbchindi.com पर "दरियाई घोड़े का 'ज़ेब्रा' ब्रश" ख़बर पढ़ कर काफ़ी तकलीफ़ हुई. बीबीसी की कॉपी में इतनी भयानक अशुद्धियाँ! भाषाई पत्रकारिता के अपने 'रोल मॉडल' से ऐसी उम्मीद नहीं थी. आप ख़ुद पढ़ कर देख लीजिये!
शुक्रिया.
डॉ. शशिकांत
नोट : पीले रंग से रंगे बीबीसी के शब्द और वाक्य मेरे हिसाब से ग़लत हैं. उनकी जगह ( ) में दिए गए शब्द/वाक्य होने चाहिए थे.
शनिवार, 13 मार्च, 2010 को 08:11 IST तक के समाचार
दरियाई घोड़े का 'ज़ेब्रा' ब्रश
इसे आप सहभागिता कहें, आपसी प्रेम कहें या फिर कुछ और, लेकिन स्विट्ज़रलैंड में ज़्यूरिख के चिड़ियाघर में जो हुआ, उससे कई लोगों की आँखें फटी रह गईं.
पहले तो सहसा उन्हें इसका यक़ीन ही नहीं हुआ लेकिन जब सच्चाई सामने थी, तो इन रोमांच और रोंगटे खड़े कर देने वाले क्षणों को दूर से कैमरे में क़ैद करने का उनके पास बेहतरीन मौक़ा था.
ज़्यूरिख के चिड़ियाघर की सैर कर रहे लोग उस समय चौंक (भौंचक रह) गए जब उन्होंने एक ज़ेब्रा को दरियाई घोड़े के जबड़े में झाँकते देखा.
लोगों को लगा अब को (तो) ज़ेब्रा की ख़ैर नहीं, लेकिन उन्हें तब और आश्चर्च (आश्चर्य ) हुआ जब दरियाई घोड़े ने ज़ेब्रा को कुछ नहीं किया.
और क़रीब जाने पर लोगों को असली कहानी पता चली. उन्होंने देखा कि दरियाई घोड़ा तो आराम से अपनी दाँत की सफ़ाई करा रहा था (है) और ज़ेब्रा भी बिना भय के इस काम को बख़ूबी अंजाम दे रहा था. (है).
क्षण
फ़्लोरिडा की जिल सॉन्सटेबी ने भी इस असाधारण क्षण को अपने कैमरे में क़ैद किया. उन्होंने बताया कि दाँत की सफ़ाई की (का) काम क़रीब 15 मिनट चला और दरियाई घोड़े ने ज़ेब्रा को कोई नुक़सान नहीं पहुँचाया.
चिड़ियाघर के उसी इलाक़े में दरियाई घोड़ा अपने बच्चे साथ था, जहाँ ज़ेब्रा भी था. (चिड़ियाघर के उसी इलाके में एक तालाब में दरियाई घोड़ा अपने बच्चों के साथ था. तालाब के किनारे अठखेलियाँ करते हुए जैसे ही उसने अपना मुंह खोला, ज़ेब्रा उसके नज़दीक आ गया और उसके दांत चाटने लगा.) दरियाई घोड़े ने अपना मुँह खोला और ज़ेब्रा ने उसकी सफ़ाई शुरू कर दी. वहाँ मौजूद हर कोई तस्वीर खींच रहा था. उस क्षण वहाँ मौजूद रहना शानदार था
फोटोग्राफ़र सॉन्सटेबी
सॉन्सटेबी ने बताया, "चिड़ियाघर के उसी इलाक़े में दरियाई घोड़ा अपने बच्चे साथ था, जहाँ ज़ेब्रा भी था. दरियाई घोड़े ने अपना मुँह खोला और ज़ेब्रा ने उसकी सफ़ाई शुरू कर दी.(चिड़ियाघर के उसी इलाके में एक तालाब में दरियाई घोड़ा अपने बच्चों के साथ था. तालाब के किनारे अठखेलियाँ करते हुए जैसे ही उसने अपना मुंह खोला, ज़ेब्रा उसके नज़दीक आ गया और उसके दांत चाटने लगा.) वहाँ मौजूद हर कोई तस्वीर खींच रहा था. उस क्षण वहाँ मौजूद रहना शानदार था."
दरियाई घोड़े को दुनिया के सबसे आक्रामक जीवों में से एक माना जाता है. अपनी दाँतों से वह छोटे नाव को दो टुकडों(ड़ों) में कर सकता है.
तीन टन के वज़न वाला दरियाई घोड़ा ज़मीन पर पाया जाने वाला दुनिया का तीसरा बड़ा स्तनपायी जानवर है.
हालाँकि सामान्य तौर पर ये एक-दूसरे को जान से नहीं मारते लेकिन अफ़्रीकी देशों में लोगों पर सैकड़ों बार इनके जानलेवा हमले हुए हैं.
भारी-भरकम होने के बावजूद दरियाई घोड़ा छोटी दूरी की दौड़ में इंसान को भी पछाड़ सकता है.
शशिकांत जी बीबीसी द्वारा की गयी भाषाई अशुद्धियाँ निश्चय ही हमारे मनो-मष्तिष्क पर बनी बीबीसी की छवि पर सवालिया निशान लगाती हैं किन्तु क्या आपको यह नहीं लगता कि आपने अतिरिक्त रूप से अपनी विद्वता को महिमा-मंडित करने की कोशिश की है.कटु भाषा के लिए क्षमा चाहूँगा.
जवाब देंहटाएंकिसी की ग़लती निकालना सही है और बीबीसी से आपकी ऐसी आशा नहीं करना दरअसल बीबीसी से आपका प्यार दर्शाता है. मेरा मानना है कि जब भी हम प्यार में किसी से आशा करते हैं तो ठेस लगती है, लेकिन मैं यहाँ यह बताता चलूं कि जमा होता है ज़मा नहीं.
जवाब देंहटाएंbeautiful
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