"बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना, आदमी को मयस्सर नहीं इन्सां होना।" / निदा फाजली
कॉमरेड ज्योति बसु की मौत से एक पूरा युग गुजर गया है। अपनी पूरी जिंदगी उन्होंने आम आदमी की राजनीति करते हुए गुजार दी। 1996 में उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला था लेकिन उनकी पार्टी ने उन्हें बनने नहीं दिया।
यदि उस वक्त उन्हें प्रधानमंत्री बनने दिया जाता तो मुल्क में आज लेफ्ट मूवमेंट का दूसरा रूप होता। यह एक बड़ा सच है कि सीपीआई और सीपीएम के विभाजन के बाद मुल्क में लेफ्ट मूवमेंट कमजोर हुआ। ऐसे मुश्किल हालात में कॉमरेड बसु लेफ्ट मूवमेंट के साथ ठीक उसी तरह खड़ेरहे जिस तरह सज्जाद जहीर और मुल्कराज आनंदप्रोग्रेसिव मूवमेंट के साथ खड़े रहे। आज उनके इंतकाल के बाद जब मैं उनकी शख्सियत और उनके कॉमनमैन बेस्ड पौलिटिकल कंसर्न पर गौर करता हूं तो मुझे लगता है कि आधुनिक हिंदुस्तान के इतिहास में महात्मा गांधी और पंडित नेहरू के कद के नेता थे कॉमरेड ज्याति बसु, बल्कि कई मायने में वे पंडित नेहरू से भी बड़े थे। ज्योति बसु गांधी की तरह आम जनता के आदमी थे। पंडित नेहरू ने "डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया" लिखी जिसका "भारत: एक खोज" नाम से अनुवाद हुआ। मैंने उस पर एक शेर लिखा था- "स्टेशन पर खत्म हुई भारत तेरी खोज, नेहरू ने लिखा नहीं कुली के सिर का बोझ।"
यदि उस वक्त उन्हें प्रधानमंत्री बनने दिया जाता तो मुल्क में आज लेफ्ट मूवमेंट का दूसरा रूप होता। यह एक बड़ा सच है कि सीपीआई और सीपीएम के विभाजन के बाद मुल्क में लेफ्ट मूवमेंट कमजोर हुआ। ऐसे मुश्किल हालात में कॉमरेड बसु लेफ्ट मूवमेंट के साथ ठीक उसी तरह खड़ेरहे जिस तरह सज्जाद जहीर और मुल्कराज आनंदप्रोग्रेसिव मूवमेंट के साथ खड़े रहे। आज उनके इंतकाल के बाद जब मैं उनकी शख्सियत और उनके कॉमनमैन बेस्ड पौलिटिकल कंसर्न पर गौर करता हूं तो मुझे लगता है कि आधुनिक हिंदुस्तान के इतिहास में महात्मा गांधी और पंडित नेहरू के कद के नेता थे कॉमरेड ज्याति बसु, बल्कि कई मायने में वे पंडित नेहरू से भी बड़े थे। ज्योति बसु गांधी की तरह आम जनता के आदमी थे। पंडित नेहरू ने "डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया" लिखी जिसका "भारत: एक खोज" नाम से अनुवाद हुआ। मैंने उस पर एक शेर लिखा था- "स्टेशन पर खत्म हुई भारत तेरी खोज, नेहरू ने लिखा नहीं कुली के सिर का बोझ।"
दरअसल महात्मा गांधी कॉमन मैन के आदमी थे, पंडित नेहरू हिंदुस्तानी मिडिल क्लास के आदमी थे लेकिन कॉमरेड ज्याति बसु लंदन में पढ़ाई करके हिन्दुस्तान की राजनीति में आए और पूरी जिंदगी आम जनता को हक दिलाने की राजनीति करते रहे। मेरा एक शेर है- "कोई न हिंदू, न मुसलिम, न ईसाई है, सबने इन्सान बनने की कसम खाई है"- ये कसम महात्मा गांधी ने खाई थी और आखिरी दम तक उन्होंने इसे निभाया। उसके बाद इस राह पर कॉमरेड बसु ही चले।
आज जब कॉमरेड बसु हमारे बीच नहीं हैं तो मुझे मिर्जा गालिब का एक शेर याद आ रहा है। गालिब साहब का यह शेर बीसवीं सदी के इन्सान पर पुरजोर ढंग से लागू होता है, चाहे वो आम षख्स हो या खास। शेर है- "बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना, आदमी को मयस्सर नहीं इन्सां होना।" मतलब यह कि हर कोई मां के पेट से आदमी के रूप में पैदा होता है लेकिन उनमें से कोई-कोई अपने जीवन संघर्ष से वह इन्सान बनता है। ज्योति बसु आदमी के रूप में पैदा हुए और इन्सान बनकर आज हमारे बीच से रुखसत हुए। पार्टी के सिद्धांत पर चलते हुए वे देश की आम जनता के दिलों की धड़कन बने रहे। जब भी भारत का इतिहास लिख जाएगा तो उनका नाम गोल्डन अक्षरों में लिख जाएगा।
(शशिकांत के साथ बातचीत पर आधारित)
कामरेड़ ज्योति बसु को लाल सलाम
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