अदम्य जिजीविषा का विनम्र कवि कुंवर नारायण
कुंवर नारायण मित्रो, बीते 19 सितम्बर को हिंदी के सम्मानित कवि कुंवर नारायण 85 वें साल में प्रवेश कर गए. कुंवर जी की प्रतिष्ठा और आदर हिंदी साहित्य की भयानक गुटबाजी के परे सर्वमान्य है. उनकी ख्याति सिर्फ लेखक की तरह नहीं, बल्कि कला की अनेक विधाओं में गहरी रुचि रखनेवाले रसिक विचारक की भी है. आज के 'हिंदुस्तान' में पढ़िए कुंवर जी पर मेरा आत्मीय आलेख शुक्रिया. - शशिकांत 'मेरी मां, बहन और चाचा की टीबी से मौत हुई थी। यह सन् 35-36 की बात है। मेरे पूरे परिवार में प्रवेश कर गयी थी टीबी। उन्नीस साल की मेरी बहन बृजरानी की मौत के छह महीने बाद 'पेनिसिलीन' दवाई मार्केट में आयी। डॉक्टर ने कहा था, 'छह महीने किसी तरह बचा लेते तो बच जाती आपकी बहन।' बीच में मुझे भी टीबी होने का शक था। चार-पाँच साल तक हमारे मन पर उसका आतंक रहा। ये सब बहुत लंबे किस्से हैं। बात यह है कि मृत्यु का एक ऐसा भयानक आतंक रहा हमारे घर-परिवार के ऊपर जिसका मेरे लेखन पर भी असर पड़ा। मृत्यु का यह साक्षात्कार व्यक्तिगत स्तर पर तो था ही सामूहिक स्तर पर भी था। द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद स...