पुण्यतिथि के बहाने फणीश्वरनाथ रेणु को याद करते हुए
ग्यारह अप्रैल को फणीश्वरनाथ रेणु की पुण्यतिथि है। 1977 में इमरजेंसी खत्म होने के डेढ़-दो महीने बाद ही उनकी मौत हो गई थी। रेणु को हम क्यों याद करते हैं? अभी तक का जो हिंदी साहित्य है उसमें सबसे उत्कृष्ट किसानी जीवन का साहित्य है। फणीश्वरनाथ रेणु के साथ एक शब्द आया- आंचलिकता। यद्यपि यह शब्द पंत जी का है। रेणु के साहित्य को आंचलिक साहित्य कहा गया। उसके बाद हिंदी साहित्य में आंचलिकता की पृवृत्ति पहचानी गई। रेणु का साहित्य वस्तुत: व्यतीतमानता (यानी जो हमेशा के लिए बीत रहा है, गुजर रहा है) का साहित्य है। इसका एक ऐतिहासिक कारण है। आज़ाद हिंदुस्तान में चुनाव हुए, पंचवर्षीय योजनाएं बनीं, सड़कों का निर्माण हुआ और इन सबके साथ विस्थापन का बड़ा दौर शुरू हुआ। गांव के लड़के शिक्षा और नौकरी के लिए बड़ी तादाद में शहरों-महानगरों में आए। वहां उनको नौकरी मिली। शादी करके वे वहीं बीवी-बच्चों के साथ रहने लगे। यानी इनके लिए परिवार का मतलब था पत्नी और बच्चे। यह मध्यवर्ग कहलाया। यह मध्य वर्ग पैदा तो हुआ गांव में, वहीं पला-पुसा लेकिन लेकिन रहने लगा शहर में। जो देहाती शहरी बन गया उसकी निगाह से गांव को देखता है उसको ...