दौलतपरस्ती बनाम सादगी

दरअसल उनकी इस सोच की वजह थी सामाजिक सरोकारों के प्रति उनका ख़ास रिश्ता अपने साक्षात्कारों में ग्लोबलाइजेशन के दौर में मुल्क के अंदर पैदा हुए नवदौलतियों की भर्त्सना करते हुए वह इनकी तुलना मुल्क के कुछ पुराने ख़ानदानी रईसों से करती थीं जो अथाह दौलतमंद होने के बावजूद सादगी से रहना पसंद करते थे और दौलत का कभी भौंडा प्रदर्शन नहीं करते थे। इस सिलसिले में वह स्व0 इंदिरा गांधी से जुड़ा अपना एक संस्मरण जरूर सुनाती थीं, जब इंदिरा जी ने मोलभाव करते हुए सौदा न पटने पर पसंद की हुई शॉल आखिरकार दुकानदार को लौटा दी थी।
आज न कुर्रतुल ऐन हैदर हमारे बीच हैं और न इंदिरा गांधी, लेकिन सामाजिक सरोकार से जुड़े उनके ये संस्मरण आज हमारे लिए बेहद अहमियत रखते हैं। क़ाश, हमारे नवदौलतिये इसे नजीर समझें और अपने गिरेबां में झांककर अपनी बेवकूफ़ाना हरक़तों से बाज आयें।
(9 जनवरी, 2010, दैनिक भास्कर, नई दिल्ली अंक में प्रकाशित)
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें