tag:blogger.com,1999:blog-2470327806990539947.post4575372160270451332..comments2023-10-11T14:46:34.905+05:30Comments on दीवान-ए-आम : कठघरे में है अपने हित के लिए लिखा इतिहास: उदय प्रकाशदीवान-ए-आमhttp://www.blogger.com/profile/04490796928850970507noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-2470327806990539947.post-14212606120758084242011-04-08T14:31:05.501+05:302011-04-08T14:31:05.501+05:30शशिकांत जी, देखिये ऊपर मैंने एक टिप्पणी लगा दी। अब...शशिकांत जी, देखिये ऊपर मैंने एक टिप्पणी लगा दी। अब कृपया ऐसे हिंदी-लेखकों को यह भी बता दें कि 'गुरु-शिष्य' परंपरा या तो पहलवानी के अखाड़ों और हिंदू मंदिरों में पायी जाती है या फिर 'हिंदी विभागों' में। आप बता दें भाई कि हम लोग दोस्त भी हो सकते हैं और सहकर्मी भी! (यही वह 'हिंदी-हिदू' मानस (mindset) है, जिससे निज़ात पाना लगभग नामुमकिन है। कल मैं गांव जा रहा हूं। देखते हैं, वहां इनके हाथ कहां-कहां तक फैले हैं? शुभकामनाएं!)Uday Prakashhttps://www.blogger.com/profile/07587503029581457151noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2470327806990539947.post-25541151805301869532011-04-08T14:23:41.501+05:302011-04-08T14:23:41.501+05:30ऐसी 'प्रगतिशीलता' जो तर्कशील न होकर किसी &...ऐसी 'प्रगतिशीलता' जो तर्कशील न होकर किसी 'आस्था' (Faith/belief) की तरह काम करे, वह अपनी मूल बनावट में प्रतिगामी और जड़ (retrogressive/ conservative and dead) है। ऐसी 'प्रगतिशीलता', जो अपने से भिन्न विचार रखने वाले लेखक, कलाकार, बौद्धिक, नागरिक को उत्पीड़ित करे और उसके प्रति घृणा का प्रचार करे, वह 'लोकतांत्रिक' तो कत्तई नहीं है। इतिहास में ऐसे सर्वसत्तावादी राजनीतिक-सांस्कृतिक संगठनों ने असहमत लेखकों-कलाकारों-नागरिकों को लेबरकैंप, जेल या अन्य ऐसी जगहों पर भेजा। ऐसे संगठनों में सक्रिय कार्यकर्ताओं और उनके सदस्यों में किसी भी स्वतंत्र लेखक-नागरिक आदि के लिए कोई सम्मान या सदभावना नहीं होती। वे बुनियादी और व्यावहारिक रूप से सत्ताधारियों और सत्ता-संस्थानों के साथ नाभिनालबद्ध एक ऐसे विषाक्त और रचना-विचार-विरोधी वातावरण का निर्माण करते हैं, जिसमें बहुत से सचमुच प्रगतिवादी कलाकारों-लेखकों का जीवित हो पाना संभव नहीं रहता। ऐसी 'प्रगतिशीलता' की जड़ें १९३६ में बने 'प्रगतिशील लेखक संघ' (Progressive Writers Association) जैसे संगठन के मूल विचारों से नहीं, बल्कि आज़ादी के बाद भारतीय राजनीति के दुखद अध:पतन की गर्त से फूटी हैं। यह प्रगतिशीलता प्रेमचंद, सज्जाद ज़हीर, मख्दूम, राहुल की प्रगतिशीलता नहीं बल्कि एक ऐसी 'क्लेप्टोक्रेसी' की नज़ीर है, जिसे हम राजनीति, नौकरशाही और अन्य क्षेत्रों में भी देखते हैं। फिर सबसे ठोस और साफ़ सच यह कि ऐसी प्रगतिशीलताओं का अपहरण जिस संकीर्ण धार्मिक,जातिवादी, चापलूस और भ्रष्ट सत्तापरस्तों ने किया है उनकी हिंसाओं से अज्ञेय, निर्मल वर्मा, यशपाल आदि बड़े लेखकों के योगदान की ही नहीं, स्वयं अपनी रक्षा की भी आपात घड़ी है। इन लेखक संगठनों के एक तीसरे दर्जे के मीडियाकर चेले-गुमाश्ते के भी इतने 'ऊंचे' संपर्क हैं, कि मेरे जैसा लेखक गली गली चप्पलें चटखाता, कभी सांप्रादायिक, कभी जातिवादी, कभी नकलची, कभी चोर कहलाता हुआ भटकता है। हिंदी को कट्टर सांप्रदायिक जातिवाद ने ग्रस लिया है। इसका विरोध ज़रूरी है। व्यापक पैमाने पर।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2470327806990539947.post-74552707048254102342011-04-06T18:59:18.045+05:302011-04-06T18:59:18.045+05:30शशिकांत जी आप उदय प्रकाश जी के साथ दोस्ताना (गुरु-...शशिकांत जी आप उदय प्रकाश जी के साथ दोस्ताना (गुरु-भक्ति) निभा ही गए।<br />अज्ञेय अगर प्रगतिशील हैं तो फिर एसी प्रगतिशीलता को धिक्कार है..... ! फिर उदय प्रकाश जी कुछ समय पहले तक किस प्रगतिशीलता के समर्थक थे? "समरथ को नहीं दोष गुसाई!"pankhuri Dixitnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2470327806990539947.post-18021227627997229202011-04-04T01:32:24.757+05:302011-04-04T01:32:24.757+05:30कुछ खास समझ में नहीं आया। टिप्पणी का सिर्फ एक अंश्...कुछ खास समझ में नहीं आया। टिप्पणी का सिर्फ एक अंश्- जहाँ उपनिवेशविरोधी आंदोलनों के एक से अधिक प्रकार के विदेशी संपर्कों/समर्थनों और उकसावों की बात की गयी है- ऎतिहासिक ऊहापोह के दौर में लेखकों बुध्दजीवियों के असमंजस को नये परिप्रेक्ष्य में देखने की दृष्टि दे सकता है । बाकी सब कुछ विशफूल थींकिंग जैसा लगा। इतिहास moral और intellectual stamina की माँग करता है। एक ही साँस में सुभाष बोस, जयप्रकाश और अज्ञेय मुक्तिबोध को समेटकर अपने मन माफिक seamless narrative गढ़ना कम से कम historical thinking तो नहीं है, किस दर्जे का साहित्यिक सर्जनात्मक चिंतन है यह मैं नहीं जानता।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2470327806990539947.post-53824963099435927842011-04-04T01:13:39.356+05:302011-04-04T01:13:39.356+05:30superb, informativesuperb, informativesanjay singh baghelhttps://www.blogger.com/profile/00327884230044921231noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2470327806990539947.post-7488553929159330352011-04-04T00:10:20.321+05:302011-04-04T00:10:20.321+05:30महत्वपूर्ण व उपयोगीमहत्वपूर्ण व उपयोगीउत्तमराव क्षीरसागरhttps://www.blogger.com/profile/16910353784499813312noreply@blogger.com